Saturday, April 19, 2014
अज्ञान के असीम अन्धकार में भटकते हुए सांसारिक प्राणियों को सम्यग्ज्ञान का आलोक प्रदान करने वाले प्रभु महावीर
अज्ञान के असीम अन्धकार में भटकते हुए सांसारिक प्राणियों को सम्यग्ज्ञान का आलोक प्रदान करने वाले प्रभु महावीर
वर्तमान में जो धर्मशासन गतिमान है ,उसके अधिपति चरम तीर्थंकर भगवान महावीर स्वामी है। माध्यम भगवान् महावीर की वह वाणी है जिसे उनके प्रधान शिष्य गणधरों ने शास्त्र का स्वरुप प्रदान किया और स्थविर भगवंतों ने बाद में लिपिबद्ध किया। इस शासन के संचालक - सूत्रधार शिष्य प्रशिष्य परम्परा से होने वाले संत है। शासनपति हम सभी आत्म कल्याण के अभिलाषियों के लिए सदा
अनुकरणीय और
स्मरणीय है।
सही को सही नहीं मानने रूप या सही को गलत और गलत को सही मानने रूप मिथ्यात्व
अज्ञान के असीम अन्धकार में भटकते हुए सांसारिक प्राणियों को सम्यग्ज्ञान का आलोक प्रदान करने वाले वहीँ है, इस कृतज्ञता के तथा गुणों के प्रति आदर भावना की दृष्टि से वे चिर-स्मरणीय भी है।
गुणों की दृष्टि से सभी तीर्थंकर समान होते है तथा वन्दनीय तथा स्मरणीय है। तीर्थंकर महावीर ने अहिंसा का अमृत ना पिलाया होता और सत्य की सुधा-
धा
रा प्रवाहित ना की होती तो इस जगत की क्या स्थिति होती ? मानव, दानव बन गया होता , धारा ने रौरव का रूप धारण कर लिया होता। भगवान ने अपनी साधना पुट दिव्य - ध्वनि के द्वारा मनुष्य की मूर्छित चेतना को संज्ञा प्रदान की , दानवी व्रतियो का शमन करने के लिए दैवी भावना जाग्रत की और मनुष्य में फैले हुए नाना प्रकार के भ्रम के सघन कोहरे को छिन्न-भिन्न करके विमल आलोक की प्रकाशपूर्ण किरणे विस्तीर्ण की। प्रश्न उठ सकता है कि संसार का अपार उपकार करने वाले भगवान् के निर्वाण को कल्याणक क्यों कहा गया है ? इसका उत्तर यह है कि लोकोत्तर पुरुष दूसरे पामर प्राणियो जैसे नहीं होते। वे आते समय
प्रे
रणा लेकर आते है और जाते समय भी प्रेरणा देकर जाते है अतएव महापुरुषों का जन्म भी कल्याणकारी होता है और निर्वाण भी।
भगवान् महावीर मृत्युंजय थे। उन्होंने आध्यात्मिक जगत की चरम सिद्धि प्राप्त की। अपने साधनाकाल में उन्होंने अन्धकार का भेदन किया। प्रत्येक स्थिति में समभाव धारण किये हुए रहे।
स्वयं ने साढ़े बारह वर्षों की उग्र तपस्या,साधना के पश्चात जाग्रत होकर
सुषुप्त जनों की आत्मा को जाग्रत किया और अंत में मुक्ति को प्राप्त हुए।भगवान के चरि
त्र
को पढ़ने और सुनने वाले के अन्तः;क
रण
में उत्कंठा जाग्रत होती है कि हम भी निर्वाण प्राप्त करे।
वीतराग की सेवा किस प्रकार
की
जा सकती है ? वीतराग के निकट पहुँच कर उनकी इच्छा के विपरीत कार्य करना सेवा नहीं है। उनके गुणों के प्रति निष्कपट प्रीति होना , प्रमोद भाव होना और उनके द्वारा उपदिष्ट सम्यक ज्ञान,दर्शन और चारित्र के मार्ग पर चलना ही वीतराग की सच्ची सेवा है। महावीर की आत्मा को पहचानना और उससे प्रेरणा प्राप्त करना ही वास्तव में महावीर की पूजा है।सांप्रदायिक रंग में रंगने से महापुरुषो का रूप बदल जाता है। यदि उपासना का मूल आधार मान लिया जाय तो सारी विडम्बनाएं ही समाप्त हो जाए।"गुणा पूजास्थानम् " इस उक्ति को कार्यान्वित करने की प्रबलावश्यकता है। मनोवृति जब तक वीतराग मय नहीं हो जाती तब तक इस जीवन में भी निराकुलता और शान्ति प्राप्त नहीं हो सकती। जितने
-२
अंशों में वीतरागता का विकास होता जाता है, उतने ही अंशो में शान्ति सुलभ हो जाती है।वीतराग के प्रति प्रमोद का अनुभव करना ही वीतरागता के प्रति बढ़ने का पहला कदम है। चित में आराध्या,आराधक और आराधना का कोई विकल्प नहीं रह जाना - तीनों का एकरूप हो जाना अर्थात भेद प्रतीति का विलीन हो जाना ही सच्ची आराधना है। जब आत्मा अपने ही स्वरुप में रमण करती है और ब्राह जगत के साथ उसका कोई लगाव नहीं रह जाता है , वहीँ ध्याता,वहीँ ध्येय और वहीँ ध्यान के रूप में परिणत हो जाता है - निर्विकल्प समाधि की दशा प्राप्त कर लेता है तभी उसकी अनंत शक्तिया जागृत होती हैं।
भगवान् महावीर "लोकप्रदीप " थे और वे स्वयं प्रकाशमय थे और समस्त जगत को प्रकाश प्रदत्त करने वाले थे। उस लोकोत्तर प्रदीप ने समस्त संसार को सन्मार्ग पर प्रशस्त किया और कुमार्ग पर जाने से रोका और अज्ञानरुपी अन्धकार का निवारण किया। किन्तु वह प्रदीप इस लोक में नहीं रहा , उनकी पावन और पुण्य स्मृति
तथा बताया हुआ सन्मार्ग
ही हमारे लिए
अनुमोदनीय और अनुकरणीय रह गया
है। अगर हम उनके चरण चिन्हों को देख कर उनके मार्ग पर चलेंगे जिन्होनें सिद्धि प्राप्त
की
हैं या आत्मोत्थान के पथ
के पथिक है तो जो सिद्धि गौतम प्रभु को मिली वह हमें भी मिल सकती है। इस पावन सन्देश को समझ कर यदि
हम
आचरण करेंगे तो हमारा
भ
विष्य भी आलोकमय बन जाएगा।
भगवान् महावीर जन्म कल्याणक की मंगल मनीषाये। .समस्त जगत का कल्याण हो।
जय जिनेन्द्र - जय महावीर - जय जैन एकता
आभार।
आपका ही अपना
संकलन करता
जैन सज्जन राज मेहता
संयोजक
जैन समन्वय समिति। .BANGALORE
पूर्व अध्यक्ष। जैन युवा संगठन
09845501150
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