भ्रष्टाचार रूपी दीमक को कौन नेस्तनाबूद करेगा
भ्रष्टाचार की बीमारी ने कितने लोगों के जीवन-रस को चूसकर नारंगी के छिलके की तरह दर-किनार कर दिया है..उनके अरमानो की होली जल चुकी है..भ्रष्टाचार इतनी चरम बुलंदी पर पहुँच चुका है क़ि सुप्रीम कोर्ट को भी उसपर अनचाही फ़ब्तिया कसनी पड रही है..खेलो में भष्टाचार, जमीन घोटालो में,रक्षा-सौदों में,दिनों-दिन के व्यवहारों में यह इतना घुलमिल चुका है क़ि बिना इसके सांस लेना तक दूभर हो चुका है..हद तो तब हो गयी है क़ि अब राशन वितरण प्रणाली में घोर अनियमित्ताओ के चलते हजारों करोडो क़ी हेराफेरी हो चुकी है तथा सरकार हाथ पर हरः धरे बैठी है क्योंकि हमाम में तो सब नंगे जो है.ऊपर से नीचे तक रेवडिया सब के बीच बराबर बटती जाती है तथा खून के आंसू रोने के लिए बचता है बेचारा गरीब. निर्धन इंसान भरी जवानी में बुढ़ापे की आगोश में समा जाता है क्योंकि आजादी के ६३ वर्षों के पश्चात् भी वह दाने-दाने के लिए मोहताज है..राशन वितरण प्रणाली में लिप्त इन नकाबपोश अपराधियों को सरकार जितनी सख्त सजा दे कम है वरना उनके होंसले युही बुलंदी पर चढ़ते रहेंगे.समय का तकाजा है कि किसी भी तरह के भ्रष्टाचार को आम जनता बढ़ावा नहीं दे ओर शुरुआत स्वयं से होनी चाहिए..
सामाजिक वातावरण में सबल ओर निर्धन लोगों का अनुपात प्रारंभ से ही विषम रहा है.निर्बलों के ऊपर सबलों के दबाव की कहानिया अनादि काल से प्रचलित रहीं है.समाज का यह भी एक विचित्र विधान है क़ि समर्थ लोगों क़ी गलत तथा नाजायज गतिविधिओं को भी सामाजिक संरक्षण मिल जाता है..भय ओर प्रीति के समन्वय से समाज समर्थ लोगों को दोष देने में हिचकिचाता है..यह हमारे सामाजिक संगठन क़ी विसंगति ही है क़ि सबल को ओर अधिक सबल बनने के अवसर सहज सुलभ होते रहते है.एक भयावह परिस्थिति यह भी द्रष्टिगोचर होती है क़ी निर्बलों को अपना पक्ष कहने ओर सुनाने के अवसर तक नहीं प्राप्त होते.उन्हें छोटे-मोटे अपराधों से जोड़ दिया जाता है जबकि सबलों के प्रत्येक आचरण को प्रशंसा क़ी निगाह से देखा जाता है..इस विचारणा का प्रतिफल यह है क़ी समर्थ मदयुक्त होकर अधिकाधिक समर्थ बनकर निर्बलों का शोषण कर रहे है..
एक नेता, एक अफसर रिश्वत लेता है तो हम कहते हैं कि यह भ्रष्टाचार है. ठीक है. लेकिन जब हम किसी बस में बिना टिकिट लिए, कण्डक्टर को आधे पौने पैसे देकर यात्रा करते हैं तब? और इतना ही नहीं, जब हम बिना बिल के कोई खरीददारी करते हैं तब? इस नज़र से देखेंगे तो पाएंगे कि हममें से शायद ही कोई हो जो भ्रष्ट न हो. बिना बिल के सामान बेचने वाला दुकानदार जितना दोषी है उससे कम दोषी हम नहीं हैं जो टैक्स बचाने के लिए खुद आग्रह करते हैं कि बिल न हो तो भी चलेगा. लेकिन, जैसा मैंने कहा यह तो हमारी चुनौती का एक हिस्सा है: भ्रष्ट आर्थिक आचरण.भ्रष्टाचार का यह विषवृक्ष छतनार ना होता जाए , इसके लिए इसके कारणो की जड़ पर ही कुठाराघ्त कराना होगा.
देश में व्याप्त कालाबाजारी,रिश्वतखोरी तथा अनगिनत भ्रष्टाचार की नई-नई किस्मे निरंतर सामने आ रही है ओर हम एक से निपटने में सक्षम भी नहीं हो पाते उससे पहले दूसरो पद्धति इज्जाद हो ज़ाती है..प्रजातंत्र में हर मनुष्य का मोल बराबर है- चाहे वह पंडित हो या मुर्ख,विचारवान हो या विचारशुन्य ,पैसे पर बिकने वाला हो या पूरा इमानदार..इसी तरह किसी भी भ्रष्टाचार के लिए हर भ्रष्टाचार उतना ही दोषी हो जितना करने वाला या करने वाला..कानून की लाठी समस्त भ्रष्टाचारियो पर एक सी चोट प्रदान करे..
अंग्रेजो की गुलामी से निवृत होने के बाद भी भ्रष्टाचार की गुलामी से त्रस्त होने के कारण ही आज भी देश के १००००० गाँव विद्युत के अभाव में जी रहे है,उतने ही गाँव सड़क से महरूम है..करीब २ लाख गाँवों में पोस्ट-ऑफिस तक नहीं है,प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र नहीं है..लाखों गाँव को रेल सेवा नसीब नहीं हुई है..ग्रामीण स्तर पर ५५ प्रतिशत आबादी ही शिक्षित है उसमे महिला शिक्षा का स्तर ओर भी नीचे है ? पञ्च-वर्षीया योजनाओ में वादे ओर स्वप्नों के सब्जबाग तो काफी दिखाए जाते है पर हकीकत के धरातल पर जमीन खिकी-खिसकी नजर आती है..जरुरत है क़ि योजनाओ में प्राथमिकता भले ही रेल,बंदरगाहों.हवाई अड्डो ,सड़को ओर विद्युत क़ी दी जाए पर साथ ही सम्पूर्ण योजना में समग्र विकास के लक्ष्य को ध्यान में रख कर सिंचाई,ग्रामीण विकास,ग्रामीण शिक्षा,स्वास्थ्य ओर प्राथमिक शिक्षा पर भी जोर रहे..नदियों को जोड़ने क़ी योजनाये ठन्डे बसते में पड़ी है जिसे असली जामा पहनाये जाने क़ी जरुरत है..नदियों को जोड़ने के कार्य से देश में कृषि उत्पादन को वर्त्तमान स्टार से ७-८ गुना बढाया जा सकेगा जिसके फलस्वरूप देश का किसान आत्म निर्भर बनेगा तथा जनता जनार्दन के हाथ में भी पैसा होगा ओर एक सीमा तक भ्रष्टाचार से विमुख होने क़ी कोशिश करेगा.देश क़ी वर्त्तमान चुनाव प्रणाली भी काफी हद तक भ्रष्टाचार को बढ़ावा देने वाली है ओर उसमे निरंतर बदलाव क़ी आवश्यकता है क्योंकि राजनीति में प्रवेश के पहले ही जब करोडो के वारे-न्यारे हो जाते है तो फिर राजनेता भ्रष्टाचा- उन्मूलन क़ी बात सोचे भी तो कैसे..सोचना है, कराना है तो जनता जनार्दन को करना है अतः कमर क़स कर समस्त स्वयं सेवी संस्था हो या स्वयं,हम यह सुनिश्चित करे क़ि कतई भ्रष्टाचार को बढ़ावा नहीं देंगे..जिस समाज ने हमें स्रष्टि का सर्वोतम वरदान बनने के अनुकूल बनाया , उसके प्रति हमारे कितने उत्तर-दायित्व है ,इसे हमें कदापि नहीं भुलना चाहिए.
जब खिले हुए कमलों को पाला मार जाये तब प्रातःकालीन सूर्य क़ी प्रखरता उन्हें खिला नहीं पाती अतः सही समय पर भ्रष्टाचार रूपी दीमक पर अंकुश लगा कर ही देश के उज्जवल भविष्य क़ी छवि अखंड रखी जा सकती है..यह समस्त शस्य श्यामला वसुधा एक ही है ओर इस पर बसर करने वाले हम सब एक परिवार के सदस्य है ,इस अवधारणा का पल्लवन ही भ्रष्टाचार क़ी विभीषिका को दूर करने में सहायक हो सकता है..
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सज्जन राज मेहता
सामाजिक कार्यकर्ता
अध्यक्ष..जैन युवा संगठन..बन्गलोर
०९८४५५०११५०
आशा है यह सामयिक लेख आपके प्रतिष्ठित पत्रिका के अनुकूल है तथा आप इसे समुचित स्थान उपलब्ध कराएँगे..यह आपके लिए एक्सक्लुसिव ही लिखा है..
आपकी प्रतिक्रिया का सदेव स्वागत है..
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