Thursday, February 28, 2013
नामुमकिन को मुमकिन किया जा सकता है
नामुमकिन को मुमकिन किया जा सकता है
नामुमकिन को मुमकिन करने निकले थे
हम छलनी में पानी भरने निकले थे
आँसू पोंछ न पाये अपनी आँखों के
और जगत की पीड़ा हरने निकले थे
जैसे उड़ने की कोशिश हो पिंजरें में
रेत का दरिया पार उतरने निकले थे
पानी बरस रहा है जंगल गीला है
हम ऐसे मौसम में मरने निकले थे
होंठों पर तो कर पाये साकार नहीं
चित्रों पर मुस्कानें धरने निकले थे
पाँव पड़े न जिन पर अब तक सावन के
ऐसी चट्टानों से झरने निकले हैं
बाती गुमसुम है दीपों में दहशत है
अंधियारे किरणों को वरने निकले थे ...
दिल में थी कुछ कर गुजरने की तमन्ना
और था पीठ पर आपका हाथ
नतीजा निकला तो तसल्ली हुई
सफलता आखिर नसीब तो हुई
बन्धुओ
बड़ी ही प्रसन्नता होती है कि संगठित प्रयासों के बलबूते पर , समुचित जानकारी का संग्रहण और समावेश कर ,संबधित पक्ष और विपक्ष को विशवास में लेकर , किसी भी अहम् मसले पर सिधान्तो की लड़ाई लड़ी जा सकती है , बशर्ते मन में जज्बान उज्जवल हो, लक्ष्य साफ़ द्रष्टिगोचर हो,तथ्यों से पूरी तरह वाकिफ हो,सकारात्मक सहयोग,समन्वय,सटीक टिप्पणियों से औत प्रोत वक्तव्य हो ,चिंतन की प्रवृति हो,सरकारी अधिकारिओं को वस्तु विषय की गहन जानकारी उपलब्ध करने में पारंगतता हासिल हो ,मीडिया में समय -२ पर सटीक और सार्थक सामग्री का प्रकाशन कराया गया हो .बिना किसी लाग -लपेट के और राजनितिक मंशा से परे हटकर राजनीतिज्ञों को भी तथा प्रशासनिक पदेन हस्तिओन के साथ सुमधुर संबध हो और सही परिवेश और परिपेक्ष्य में उनतक बात पहुंचा पाए तो .धीरे-धीरे से ही सही पर अंत में सफलता नसीब हो सकती है . हम कतई आपा ना खोये , अधीर होकर किसी को कटु वचन न कहे , आपस में ना उलझे ,हम पदाधिकारियो के बिच के अंतर द्वंध को बाहर कदापि उजागर न होने दे , हमारेबिच स्वस्थ प्रतिद्वान्धिता सदेव रहे , मतभेद कभी मन-भेद में पल्लवित और पुष्पित ना हो ..इसका सदेव आभास रहे ..एक अकेला कुछ नहीं कर सकता .. संगठन में ही शक्ति है .. धैर्य,साहस,गहन चिंतन,मनन,लेखन,अनुसन्धान जारी रहे और संबधित जितने भी सहयोगी दल हो उनको विशवास में लेकर किया गया कार्य फलित होता है ..कोई भी पत्थर हथोड़े की एक चोट से नहीं टूटता तो इसका अर्थ कदापि यह नहीं कि वे प्रयास व्यर्थ हुए बल्कि उनसे पत्थर कमजोर होता गया , आखिर सत्कार्य साकार होना ही था ..
आज हमारे समाज में सामाजिक संगठनों की जैसे बाढ सी आगई है किसी ना किसी क्षेत्र में कोई ना कोई सामाजिक संगठन जरूर कार्य कर रहा है लेकिन सवाल यह उठता है कि आज हमारे समाज विशेष में अनेक पंजीकृत राष्ट्रीय, प्रादेशिक व क्षेत्रिय संगठन कार्यरत है क्या वे संगठन अपना दायित्व पूर्ण रूप से निभा रहे हैं और वे अपने संविधान व विधान के अनुरूप कार्य कर रहे हैं ? यदि ये संगठन ऐसा करने में असमर्थ है तो हमारा नैतिक दायित्व बनाता है कि हम उस अनियमित्ता का आंकलन करे और उसके सुधार के लिए आवाज़ उठाएं । प्राय: ऐसा देखने में आता है कि कुछ लोग अपना दायित्व निभाने के बजाय केवल टिप्पणियां ही करते रहते हैं । जबकि वास्तिविकता में वे खुद भी उसका पालन नहीं करते हैं । लेकिन वे दूसरो से अपेक्षा करते हैं कि वे उसका पालन करें । ऐसे व्यक्ति किसी भी समाज व संगठन के लिए खतरा है । क्या इस प्रकार भी कोई समाज का भला हो सकता है । जब किसी सामाजिक संगठन का मुख्य व्यक्ति केवल यह चाहता है कि वह ही हर बार उस संगठन के मुखियां के रूप में चुन कर आए । वह अपनी कुर्सी को बचाने के लिए साम-दाम दण्ड भेद की नीति अपनाने से भी नहीं हिचकिचाता है ओर वह चाहता है कि वह उस संस्था का आजीवन मुखियां बनकर अपनी वाहवाही लूटने की फिराख़ में रहता है । लेकिन उसे इस बात का अहसास नहीं होता है कि वह इस स्वार्थ की भावना के पीछे समाज का कितना नुकसान कर रहा है । ऐसे व्यक्तियों को चाहिए कि वे अपनी नीति और नियती दौनों में सुधार करे और समाज हित के बारे में सोचे उसी में उनका व समाज का भला है । नहीं तो आने वाली पीढ़ि उन्हें निश्चित ही दोषी ठहराएगी । आज हमारे संगठनों को स्वच्छ और दृढ़ रखना भी हमारी जिम्मेदारी है ।
कर्णाटक होजरी एंड गारमेंट association ( खागा ) पिचले काफी वर्षो से अपने सदस्यों के हितार्थ कइ जनउपयोगी कार्यो को लेकर आगे बढ़ा है तथा आपके सहकार से आशातीत सफलता हासिल कर रहा है ..चाहे एंट्री टैक्स OR EXCISE का मसला हो , BBMP ट्रेड लाइसेंस का मसला हो ,वेट का मसला हो, WEIGHT & MEASUREMENT का मसला हो , सामजिक कार्य हो , अकाल राहत हो , सुनामी हो , उड़ीसा त्रासदी हो . राजस्थान में अकाल राहत या गुजरात में भूकंप हो, हम पदाधिकारियो को सुकून महसूस होता है कि भले ही कोई हमें उस सफलता का ठीकरा हमारे सर पर फोड़े या नहीं , पर उनके मन में कही न कही तो हमारे कार्य के प्रति श्रधा और विशवास के बिज अंकुरित हो रहे है ,भले ही वे मुंह पर नहीं जताए , पर उनकी आँखों में हमारे प्रति अपनत्व महसूस हम कर ही लेते है ..किसी भी वर्ग को सफलता यूँ ही नहीं मिलती या यों कहू कि सफलता अलादीन के चिराग कि तरह भूमि को फोड़ कर नहीं निकला करती-ना ही किसी अवतार कि तरह आकाश से अवतरित होती है ..कामयाबिया हमारे स्वस्थ नजरिये का परिणाम है..सेवाओं का प्रतिफल है,स्वस्थ मानसिकता की परिणिति है, ईश्वरीय आशीर्वादों से फलित, सिंचित और पल्लवित हो रही है..समाज ने एक हाथ से लिया तो दुसरे हाथ को देने के लिए खुला छोड़ रखा है..जैसे आकाश में यदि प्रकाश हो और कमल का विकास ना हो ,ऐसा कभी नहीं हो सकता उसी तरह जन -जन के कल्याण क़ी अभिलाषा मन में संजोये हम व्यापारी व्यवसाय में सब कुछ दांव पर लगा कर तन्मयता से गतिविधिओं को अंजाम दे और सफलता हमारे कदन ना चूमे ...यह भला कैसे हो सकता है..
नई पीढ़ी क़ी सोच भी व्यापक बदलाव को आतुर है और आशा ही नहीं पूर्ण ऐतबार है कि उनके संकल्पों क़ी बदौलत कुछ महत्वपूर्ण योजनाओं में ज्यादा दिलचस्पी बढ़ेगी ..युवाओं के लिए हर अवसर एक कांच की फूलदानी कि तरह है जो ना मालुम कब हाथ से फिसल जाए--या फिर कागज़ के एक पुडिया की तरह है कि कब पानी कि बूंद से यह गल जाए पर वे ज्यादा सतर्कता तथा बुजुर्गो के अनुभवी मार्गदर्शन में अपनी रोटी बराबर सेंक लेंगे..जरुरत है कि हम युवा सही दिशा में निरंतर आगे बढ़ते हुए समाज की दशा को बदलने में अपनी क्षमताओं की आहुति प्रदान कर संतोष सुख को प्राप्त करे..
सामजिक व्यवस्थाओ से जुड़े होने के कारण अन्य समाज एवं संघ के सदस्यों को हमसे अपेक्षाए होना स्वाभाविक है,जिस पर हमारा द्रष्टिकोण सुधारात्मक ह़ो, सोने में सुहागा ह़ो जायेगा .. यदि हम सब मिलकर,अपनी-अपनी क्षमताओ का तड़का लगाकर ,इसी तरह जन हितार्थ चेष्टा कर सुप्रयांसो से समाज को नयी रोशनी दिखा सके तो हमारे अपनों के सस्थ संबधो में और प्रगाढ़ता आती रहेगी तथा तत्परता और लगन से समाज सफलता के शिखर की और अग्रसर होता रहेगा .. आपका समय - समय पर मार्गदर्शन तथा निर्देशन समाज में नई चेतना का संचार करेगा...विश्व का मंगल हो,प्राणी मात्रा का मंगल हो,सभी के उज्जवल भविष्य क़ी मंगल कामना शुभ भावों के दीये में जलाकर प्रेषित करते हुए हर जन के सहयोग,सानिध्य,स्नेह,सहकार क़ी भावना भाता हूँ..
विशेष आदर सहित........
प्रत्यक्ष ओर अप्रत्यक्ष रूप से सहयोग करने वालों को धन्यवाद..
जैन सज्जन राज मेहता
सामाजिक कार्यकर्ता..
098455O1150
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