यौन शिक्षा काविषय यौन शिक्षा काविषयपरिपक्वता से परिपूर्ण है तथा उस पर पक्ष -विपक्ष का आमंत्रण ही यह दर्शाता है कि यौन शिक्षा पर जानकारी स्कूली शिक्षा में प्रदत कराना खतरे से खाली तो कतई नहीं है..आदर्श युवा वही है जो सुयोग्य बनकर परिवार-गुरुजन की प्रतिष्ठा में अभिव्रध्धि करे तथा प्राप्त ज्ञान राशी में चक्रव्रधि करे.पुराना चेला एकलव्य अंगूठा दे देता है और आज का चेला अंगूठा दिखा देता है ..अच्छा युवा एकलव्य को आदर्श मानता है तथा गुरु-पद नख-रज को अपने मस्तक पर शिव की विभूति की तरह रमाता है..उसे जीवन में एक ही वस्तु की बुभुक्षा रहती है और वह है विद्या.बालपन की व्यावहारिक शिक्षा-जीवन नियमों एवं नीतियों को आचरण में लाकर युवा जीवन अनुशासित बना सकता है और मंझधार में यौन शिक्षा के भंवर में फँस कर राह से भ्रमित भी हो सकता है..संयम जीवन का आतंरिक सौंदर्य है तथा जो युवक आतंरिक सौंदर्य का महत्व समझ लेता है वह संयम और नियम से अपने मन को उजला बनाता है..मनरूपी सेनापति की अवज्ञा कर यदि दोनों पांव दो और चले -दोनों कान दो और सुने या दोनों आंख दो और देखे तो उस अबोधबालक की स्थति क्या होगी..
युवा समाज के आशा सुमन है, राष्ट्र के भावी कर्णधार है,विश्व के प्रेरणा प्रदीप है,उन्हें यह नहीं भुलना चाहिए कि आग में तपकर कनक कुंदन बनता है..यदि वे साधना -अनल में तपेंगे नहीं तो खरे सच्चे कैसे बनेंगे ..स्वस्थ शरीर में ही स्वस्थ मस्तिष्क का निवास होता है तथा ज्ञान रूपी दीपक प्रज्ज्वलित हो सकता है-मन का वातायन उन्मुक्त रह पाता है-विचारता है और किसी निष्कर्ष पर पहुँच पाता है..मतदान जैसे अधिकार से 18 वर्ष की आयु सीमा उन्हें मर्यादा में जकड़े हुए है तो यौन शिक्षा पाने हेतु कम से कम 15 वर्ष की सीमा अवश्यम्भावी है तथा 15 वर्ष के पश्चात् ही जाग्रत विवेकावस्था में यौन शिक्षा परोसी जाये -सकारात्मक रूप से प्रभावी रहेगी ..नादानी उससे कोंसो दूर होगी तथा विकसित दिमाग के बलबूते पर हर किस्म की उंच-नीच से भलीभांति वाकिफ होगा..
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