Monday, December 20, 2010

स्नेह मिलन एवं तीर्थ-यात्रा सानंद संपन्न

स्नेह मिलन एवं तीर्थ-यात्रा सानंद संपन्न

पहली बात शहर से दूर आयोजित जैन युवा संगठन का स्नेह मिलन एवं तीर्थ -यात्रा कार्यक्रम हैदराबाद में समस्त सदस्यों की सहभागिता से सानंद संपन्न हुआ..१८ तारीख को उप-प्रवर्तक श्री गौतम-मुनीसा के दर्शन ओर धर्म लाभ, स्नो-वर्ल्ड का भ्रमण तथा रात्रि में प्राचीन तीर्थ स्थली श्री कुलपाक जी में जैन युवा संगठन हैदराबाद के सानिध्य में भक्ति संध्या ओर दर्शन का भरपूर लाभ लिया.संगठन की ओर से अध्यक्ष जैन सज्जन राज मेहता ने श्री गौतम मुनीसा से बन्गलोर पधारने हेतु विनती रखी.जैन राजेश कुमार बांठिया ने जैन एकता के संगठन के प्रयांसो की जानकारी दी..मंर्त्री श्री सुरेश धोका ने कार्यक्रम का संचालन किया.. १९ तारीख को सवेरे कुलपाक जी में पूजा-आरती-दर्शन के पश्चात् सुप्रसिद्ध रमणीय स्थली श्री रामोजी राव फिल्मसिटी का दौरा काफी रोचक रहा तथा मौसम ओर संघ की सानिध्यताt ने उसमे चार चंद लगा दीये..समस्त कार्यक्रम काफी सुनियोजित तथा समयानुकूल होने के साथ नाश्ते-खाने तथा ठहरने की अति सुन्दर व्यवस्था होने के कारण भव्यता को छु सका..यूँ तो सभी ने भरपूर सहयोग दिया पर अध्यक्ष, मंत्री. तथा कार्यक्रम संयोजक श्री सुरेश mandot ,सुभाष गोटावत,उपाध्यक्ष श्री महावीर गोटावत तथा कोषाध्यक्ष श्री डूंगरमल चोपड़ा का विशेष सहयोग रहा..सक्रिय कार्यकर्ता श्री दिलीप संचेती,भरत बाफना तथा श्री प्रकाश गाँधी का भी विशेषतम सहयोग रहा..हैदराबाद के श्री नीरू भाई..चेतन कुमारजी ओर अमृत लाल जी पितलिया का अदभुत सहयोग ओर स्नेह मिला..१९ तारीख की गरीब रथ एक्सप्रेस से रवाना होकर संघ आज प्रातः ८ बजे बन्गलोर सकुशल पहुंचा..समस्त गुरु भगवन्तो के आशिर्व्वाद से यह स्नेह-मिलन यादगार रहा.. sadasya परिवारों का यहीं कहना था की इस तरह के कार्यक्रम निरंतर हो..
सधन्यवाद


Sajjan Raj Mehta

Wednesday, December 8, 2010

HAPPY ANNIVERSARY TO DNA

HAPPY ANNIVERSARY TO DNA


The first duty of the newspaper is to report facts.It should never be polluted by the touch of the selfish interest,coloured opinion and misrepresentation of facts.It should be impartial and free from any party affiliation.However it should help to create the healthy understanding between the masses and those who govern their fate and shape the destiny of the nation.Press is the backbone of the trade and industry.It is the lifeline of the economic activities.

Media is not responsible for all the things that happen but they are responsible for the way they act when they do happen.Language is the apparel in which thoughts of a newspaper parade before the public.DNA never clothe them in vulgar or shoddy attire.Last year was a happening year for DNA in Bangalore & i feel "he is never alone who is in the company of noble thoughts.The right train of thoughts can take you to a better station in life.".DNA is in safe hands & each individual there knows the responsibility.

DNA has been destructive against the social evils such as rising prices,black market,corruption in Government etc.It has criticised the inaction of the Government and urged reforms.It has ventilated public grievances and demanded their redress.DNA infuses the true spirit of patriotism and promote concord among the people.

DNA is progressing perfectly in the right direction & wish more success,happiness & prosperity..It should continuously exercise its powers carefully and honourably and should always fight for the cause of truth,righteousness,communal harmony and justice...

--
Sajjan Raj Mehta
9845501150
EX.PRESIDENT.KARNATAKA HOSIERY & GARMENT ASSOCIATION.
PRESIDENT..JAIN YUVA SANGATHAN.KARNATAKA.

Tuesday, December 7, 2010

भ्रष्टाचार रूपी दीमक को कौन नेस्तनाबूद करेगा

भ्रष्टाचार रूपी दीमक को कौन नेस्तनाबूद करेगा


भ्रष्टाचार की बीमारी ने कितने लोगों के जीवन-रस को चूसकर नारंगी के छिलके की तरह दर-किनार कर दिया है..उनके अरमानो की होली जल चुकी है..भ्रष्टाचार इतनी चरम बुलंदी पर पहुँच चुका है क़ि सुप्रीम कोर्ट को भी उसपर अनचाही फ़ब्तिया कसनी पड रही है..खेलो में भष्टाचार, जमीन घोटालो में,रक्षा-सौदों में,दिनों-दिन के व्यवहारों में यह इतना घुलमिल चुका है क़ि बिना इसके सांस लेना तक दूभर हो चुका है..हद तो तब हो गयी है क़ि अब राशन वितरण प्रणाली में घोर अनियमित्ताओ के चलते हजारों करोडो क़ी हेराफेरी हो चुकी है तथा सरकार हाथ पर हरः धरे बैठी है क्योंकि हमाम में तो सब नंगे जो है.ऊपर से नीचे तक रेवडिया सब के बीच बराबर बटती जाती है तथा खून के आंसू रोने के लिए बचता है बेचारा गरीब. निर्धन इंसान भरी जवानी में बुढ़ापे की आगोश में समा जाता है क्योंकि आजादी के ६३ वर्षों के पश्चात् भी वह दाने-दाने के लिए मोहताज है..राशन वितरण प्रणाली में लिप्त इन नकाबपोश अपराधियों को सरकार जितनी सख्त सजा दे कम है वरना उनके होंसले युही बुलंदी पर चढ़ते रहेंगे.समय का तकाजा है कि किसी भी तरह के भ्रष्टाचार को आम जनता बढ़ावा नहीं दे ओर शुरुआत स्वयं से होनी चाहिए..

सामाजिक वातावरण में सबल ओर निर्धन लोगों का अनुपात प्रारंभ से ही विषम रहा है.निर्बलों के ऊपर सबलों के दबाव की कहानिया अनादि काल से प्रचलित रहीं है.समाज का यह भी एक विचित्र विधान है क़ि समर्थ लोगों क़ी गलत तथा नाजायज गतिविधिओं को भी सामाजिक संरक्षण मिल जाता है..भय ओर प्रीति के समन्वय से समाज समर्थ लोगों को दोष देने में हिचकिचाता है..यह हमारे सामाजिक संगठन क़ी विसंगति ही है क़ि सबल को ओर अधिक सबल बनने के अवसर सहज सुलभ होते रहते है.एक भयावह परिस्थिति यह भी द्रष्टिगोचर होती है क़ी निर्बलों को अपना पक्ष कहने ओर सुनाने के अवसर तक नहीं प्राप्त होते.उन्हें छोटे-मोटे अपराधों से जोड़ दिया जाता है जबकि सबलों के प्रत्येक आचरण को प्रशंसा क़ी निगाह से देखा जाता है..इस विचारणा का प्रतिफल यह है क़ी समर्थ मदयुक्त होकर अधिकाधिक समर्थ बनकर निर्बलों का शोषण कर रहे है..

एक नेता, एक अफसर रिश्वत लेता है तो हम कहते हैं कि यह भ्रष्टाचार है. ठीक है. लेकिन जब हम किसी बस में बिना टिकिट लिए, कण्डक्टर को आधे पौने पैसे देकर यात्रा करते हैं तब? और इतना ही नहीं, जब हम बिना बिल के कोई खरीददारी करते हैं तब? इस नज़र से देखेंगे तो पाएंगे कि हममें से शायद ही कोई हो जो भ्रष्ट न हो. बिना बिल के सामान बेचने वाला दुकानदार जितना दोषी है उससे कम दोषी हम नहीं हैं जो टैक्स बचाने के लिए खुद आग्रह करते हैं कि बिल न हो तो भी चलेगा. लेकिन, जैसा मैंने कहा यह तो हमारी चुनौती का एक हिस्सा है: भ्रष्ट आर्थिक आचरण.भ्रष्टाचार का यह विषवृक्ष छतनार ना होता जाए , इसके लिए इसके कारणो की जड़ पर ही कुठाराघ्त कराना होगा.

देश में व्याप्त कालाबाजारी,रिश्वतखोरी तथा अनगिनत भ्रष्टाचार की नई-नई किस्मे निरंतर सामने आ रही है ओर हम एक से निपटने में सक्षम भी नहीं हो पाते उससे पहले दूसरो पद्धति इज्जाद हो ज़ाती है..प्रजातंत्र में हर मनुष्य का मोल बराबर है- चाहे वह पंडित हो या मुर्ख,विचारवान हो या विचारशुन्य ,पैसे पर बिकने वाला हो या पूरा इमानदार..इसी तरह किसी भी भ्रष्टाचार के लिए हर भ्रष्टाचार उतना ही दोषी हो जितना करने वाला या करने वाला..कानून की लाठी समस्त भ्रष्टाचारियो पर एक सी चोट प्रदान करे..

अंग्रेजो की गुलामी से निवृत होने के बाद भी भ्रष्टाचार की गुलामी से त्रस्त होने के कारण ही आज भी देश के १००००० गाँव विद्युत के अभाव में जी रहे है,उतने ही गाँव सड़क से महरूम है..करीब २ लाख गाँवों में पोस्ट-ऑफिस तक नहीं है,प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र नहीं है..लाखों गाँव को रेल सेवा नसीब नहीं हुई है..ग्रामीण स्तर पर ५५ प्रतिशत आबादी ही शिक्षित है उसमे महिला शिक्षा का स्तर ओर भी नीचे है ? पञ्च-वर्षीया योजनाओ में वादे ओर स्वप्नों के सब्जबाग तो काफी दिखाए जाते है पर हकीकत के धरातल पर जमीन खिकी-खिसकी नजर आती है..जरुरत है क़ि योजनाओ में प्राथमिकता भले ही रेल,बंदरगाहों.हवाई अड्डो ,सड़को ओर विद्युत क़ी दी जाए पर साथ ही सम्पूर्ण योजना में समग्र विकास के लक्ष्य को ध्यान में रख कर सिंचाई,ग्रामीण विकास,ग्रामीण शिक्षा,स्वास्थ्य ओर प्राथमिक शिक्षा पर भी जोर रहे..नदियों को जोड़ने क़ी योजनाये ठन्डे बसते में पड़ी है जिसे असली जामा पहनाये जाने क़ी जरुरत है..नदियों को जोड़ने के कार्य से देश में कृषि उत्पादन को वर्त्तमान स्टार से ७-८ गुना बढाया जा सकेगा जिसके फलस्वरूप देश का किसान आत्म निर्भर बनेगा तथा जनता जनार्दन के हाथ में भी पैसा होगा ओर एक सीमा तक भ्रष्टाचार से विमुख होने क़ी कोशिश करेगा.देश क़ी वर्त्तमान चुनाव प्रणाली भी काफी हद तक भ्रष्टाचार को बढ़ावा देने वाली है ओर उसमे निरंतर बदलाव क़ी आवश्यकता है क्योंकि राजनीति में प्रवेश के पहले ही जब करोडो के वारे-न्यारे हो जाते है तो फिर राजनेता भ्रष्टाचा- उन्मूलन क़ी बात सोचे भी तो कैसे..सोचना है, कराना है तो जनता जनार्दन को करना है अतः कमर क़स कर समस्त स्वयं सेवी संस्था हो या स्वयं,हम यह सुनिश्चित करे क़ि कतई भ्रष्टाचार को बढ़ावा नहीं देंगे..जिस समाज ने हमें स्रष्टि का सर्वोतम वरदान बनने के अनुकूल बनाया , उसके प्रति हमारे कितने उत्तर-दायित्व है ,इसे हमें कदापि नहीं भुलना चाहिए.

जब खिले हुए कमलों को पाला मार जाये तब प्रातःकालीन सूर्य क़ी प्रखरता उन्हें खिला नहीं पाती अतः सही समय पर भ्रष्टाचार रूपी दीमक पर अंकुश लगा कर ही देश के उज्जवल भविष्य क़ी छवि अखंड रखी जा सकती है..यह समस्त शस्य श्यामला वसुधा एक ही है ओर इस पर बसर करने वाले हम सब एक परिवार के सदस्य है ,इस अवधारणा का पल्लवन ही भ्रष्टाचार क़ी विभीषिका को दूर करने में सहायक हो सकता है..


--
सज्जन राज मेहता
सामाजिक कार्यकर्ता
अध्यक्ष..जैन युवा संगठन..बन्गलोर
०९८४५५०११५०

आशा है यह सामयिक लेख आपके प्रतिष्ठित पत्रिका के अनुकूल है तथा आप इसे समुचित स्थान उपलब्ध कराएँगे..यह आपके लिए एक्सक्लुसिव ही लिखा है..
आपकी प्रतिक्रिया का सदेव स्वागत है..
भ्रष्टाचार की बीमारी ने कितने लोगों के जीवन-रस को चूसकर नारंगी के छिलके की तरह दर-किनार कर दिया है..उनके अरमानो की होली जल चुकी है..भ्रष्टाचार इतनी चरम बुलंदी पर पहुँच चुका है क़ि सुप्रीम कोर्ट को भी उसपर अनचाही फ़ब्तिया कसनी पड रही है..खेलो में भष्टाचार, जमीन घोटालो में,रक्षा-सौदों में,दिनों-दिन के व्यवहारों में यह इतना घुलमिल चुका है क़ि बिना इसके सांस लेना तक दूभर हो चुका है..हद तो तब हो गयी है क़ि अब राशन वितरण प्रणाली में घोर अनियमित्ताओ के चलते हजारों करोडो क़ी हेराफेरी हो चुकी है तथा सरकार हाथ पर हरः धरे बैठी है क्योली हमाम में तो सब नंगे जो है..रेवडिया सब के बीच बराबर बनती जाती है तथा खून के आंसू रोने के लिए बचता है बेचारा गरीब.गरीब भरी जवानी में बुढ़ापे की आगोश में समा जाता है क्योंकि आजादी के ६३ वर्षों के पश्चात् भी वह दाने-दाने के लिए मोहताज है..राशन वितरण प्रणाली में लिप्त इन नकाबपोश अपराधियों को सरकार जितनी सख्त सजा दे कम है वरना उनके होंसले युही बुलंदी पर चढ़ते रहेंगे.समय का तकाजा है की किसी भी तरह के भ्रष्टाचार को आम जनता बढ़ावा नहीं दे ओर शुरुआत स्वयं से होनी चाहिए..

एक नेता, एक अफसर रिश्वत लेता है तो हम कहते हैं कि यह भ्रष्टाचार है. ठीक है. लेकिन जब हम किसी बस में बिना टिकिट लिए, कण्डक्टर को आधे पौने पैसे देकर यात्रा करते हैं तब? और इतना ही नहीं, जब हम बिना बिल के कोई खरीददारी करते हैं तब? इस नज़र से देखेंगे तो पाएंगे कि हममें से शायद ही कोई हो जो भ्रष्ट न हो. बिना बिल के सामान बेचने वाला दुकानदार जितना दोषी है उससे कम दोषी हम नहीं हैं जो टैक्स बचाने के लिए खुद आग्रह करते हैं कि बिल न हो तो भी चलेगा. लेकिन, जैसा मैंने कहा यह तो हमारी चुनौती का एक हिस्सा है: भ्रष्ट आर्थिक आचरण.भ्रष्टाचार का यह विषवृक्ष छतनार ना होता जाए , इसके लिए इसके कारणो की जड़ पर ही कुठाराघ्त कराना होगा.

देश में व्याप्त कालाबाजारी,रिश्वतखोरी तथा अनगिनत भ्रष्टाचार की नई-नई किस्मे निरंतर सामने आ रही है ओर हम एक से निपटने में सक्षम भी नहीं हो पाते उससे पहले दूसरो पद्धति इज्जाद हो ज़ाती है..प्रजातंत्र में हर मनुष्य का मोल बराबर है- चाहे वह पंडित हो या मुर्ख,विचारवान हो या विचारशुन्य ,पैसे पर बिकने वाला हो या पूरा इमानदार..इसी तरह किसी भी भ्रष्टाचार के लिए हर भ्रष्टाचार उतना ही दोषी हो जितना करने वाला या करने वाला..कानून की लाठी समस्त भ्रष्टाचारियो पर एक सी चोट प्रदान करे..

अंग्रेजो की गुलामी से निवृत होने के बाद भी भ्रष्टाचार की गुलामी से त्रस्त होने के कारण ही आज भी देश के १००००० गाँव विद्युत के अभाव में जी रहे है,उतने ही गाँव सड़क से महरूम है..करीब २ लाख गाँवों में पोस्ट-ऑफिस तक नहीं है,प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र नहीं है..लाखों गाँव को रेल सेवा नसीब नहीं हुई है..ग्रामीण स्तर पर ५५ प्रतिशत आबादी ही शिक्षित है उसमे महिला शिक्षा का स्तर ओर भी नीचे है ? पञ्च-वर्षीया योजनाओ में वादे ओर स्वप्नों के सब्जबाग तो काफी दिखाए जाते है पर हकीकत के धरातल पर जमीन खिकी-खिसकी नजर आती है..जरुरत है क़ि योजनाओ में प्राथमिकता भले ही रेल,बंदरगाहों.हवाई अड्डो ,सड़को ओर विद्युत क़ी दी जाए पर साथ ही सम्पूर्ण योजना में समग्र विकास के लक्ष्य को ध्यान में रख कर सिंचाई,ग्रामीण विकास,ग्रामीण शिक्षा,स्वास्थ्य ओर प्राथमिक शिक्षा पर भी जोर रहे..नदियों को जोड़ने क़ी योजनाये ठन्डे बसते में पड़ी है जिसे असली जामा पहनाये जाने क़ी जरुरत है..नदियों को जोड़ने के कार्य से देश में कृषि उत्पादन को वर्त्तमान स्टार से ७-८ गुना बढाया जा सकेगा जिसके फलस्वरूप देश का किसान आत्म निर्भर बनेगा तथा जनता जनार्दन के हाथ में भी पैसा होगा ओर एक सीमा तक भ्रष्टाचार से विमुख होने क़ी कोशिश करेगा.देश क़ी वर्त्तमान चुनाव प्रणाली भी काफी हद तक भ्रष्टाचार को बढ़ावा देने वाली है ओर उसमे निरंतर बदलाव क़ी आवश्यकता है क्योंकि राजनीति में प्रवेश के पहले ही जब करोडो के वारे-न्यारे हो जाते है तो फिर राजनेता भ्रष्टाचा- उन्मूलन क़ी बात सोचे भी तो कैसे..सोचना है, कराना है तो जनता जनार्दन को करना है अतः कमर क़स कर समस्त स्वयं सेवी संस्था हो या स्वयं,हम यह सुनिश्चित करे क़ि कतई भ्रष्टाचार को बढ़ावा नहीं देंगे..जिस समाज ने हमें स्रष्टि का सर्वोतम वरदान बनने के अनुकूल बनाया , उसके प्रति हमारे कितने उत्तर-दायित्व है ,इसे हमें कदापि नहीं भुलाना चाहिए...


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सज्जन राज मेहता
अध्यक्ष..जैन युवा संगठन..बन्गलोर
09845501150

Monday, December 6, 2010

BAN THE SLAUGHTERING OF COWS AND OXES IN KARNATAKA

BAN THE SLAUGHTERING OF COWS AND OXES IN KARNATAKA


The Bhartiya Janta Party contested for election in Karnataka with a manifesto that if chosen to power, they will ban the slaughtering of cows and oxes. Very well aware of this, the people of Karnataka choose the BJP government into power, and we must commend the BJP government for living up to their end of the bargain.



After introducing and getting the Prevention of Cow Slaughter bill cleared from the assembly, it was supposed to be signed by the governor and enacted as a law, who instead of signing it reverted it to the President of India. The president too is sitting on the bill and technically she can do this forever or till the next elections.

The government is suppose to be 'by the people' and 'for the people' and the President and the Governor are suppose to be the servants of the Republic of India. But instead of acting upon the compassionate will of the people, they have perpetrated a fraud on the people of Karnataka and have hurt their sentiments and played with their emotions. The people of India and especially Karnataka are loosing their patience and are waiting for an answer.

Let us not forget that Chapter IV-A, Article 51A(g) of The Constitution of India stated that, "it shall be the fundamental duty of every citizen of India ... to have compassion for all living creatures." It should be noted that even the former Prime Minister, the late Indira Gandhi, had written to all State governments in 1982 suggesting a total ban on slaughter of cattle. Severe penalties have been incorporated in the legislation only to ensure an effective enforcement. All the founding fathers of our great nation echoed similar sentiments. Mahatma Gandhi, the father of our nation rightly said that the greatness of a nation and its moral progress can be judged by the way its animals are treated.

When we take something from someone, we must return the favor. The Cow had fed and nourished us with the same milk that she feeds and nourishes her baby with. This goes to say a lot. We have fed on her breast milk and now we must return the favor. It's a shame on our conscious to go to bed every night while innocent and noble creatures like cows are brutally and mercilessly slaughtered and hacked apart to death. Creatures who have never wronged or harmed us but only served - only to be slaughtered for their service and love.

Its a statement by the people of Karnataka that we are well aware of our fundamental duties to this great nation and to her earthlings and to her just and fair constitution that has set a shining example of democracy for the world to follow. This is a cry for mercy and a stepping stone for complete nonhuman emancipation. We have sent memorandums to the President of India. This inhumane and shameful mockery of democracy shall not be tolerated any longer. She was there when you needed her. Now she needs you. -

Sajjan Raj Mehta, President Jain Yuva Sangathan, Bangalore, Telephone: 9845501150.