Sunday, April 20, 2014

INTRODUCTION OF EMINENT SOCIAL WORKER AND ELDER BROTHER SRI PADAM RAJ SA MEHTA

ना देख मुड़कर, तुझे मंजिलों को पाना है अपनी हस्ती को आफताब बनाना है ना मचलना राहों में चांद को देख कर तुझे तो सूरज बनकर जग को चमकाना है जोधपुर राजस्थान में जन्मे पदम् राज जी मेहता स्वर्गीय श्री उगम राज सा के सुपुत्र है तथा जिंदगी में भरपूर उतार चढ़ावो का आपने सामना किया है तथा अपनी लगन और ढृढ़ इच्छा शक्ति के बलबूते पर निरंतर आप श्री नित नई कामयाबी हासिल कर रहे है। सफलता सरलमना .सुह्रदयी .समर्पित .सेवा भावी .सजग .सजीले .सदगुणी .सक्षम .संकल्पित और सकारात्मक सोच के धनी हमारे अपने हंसमुख, मिलनसार,सक्रिय कार्यकर्ता और हर दिल अजीज श्री पदम राज सा मेहता आज किसी परिचय के मोहताज नहीं है। उनका जन्म दिन आ रहा है , प्रेषित है कुछ पंक्तिया जो उनकी सम्यक सोच और मानसिकता के अनुरूप है ​ पिछले ४० वर्षों से आपने बंगलौर को कर्म भूमि बनाया हुआ है तथा अपने सभी भाई बंधू और स्वयं के पुत्रो के साथ मेहता परिवार का नाम रोशन कर रहे है। आप स्वयं तो सामजिक रत्न है ही पर आपके भाई स्वर्गीय श्री कनक राज मेहता , पवन राज मेहता ,सज्जन राज मेहता और दोनों सुपुत्र अमित मेहता तथा आशीष मेहता भी कई संगठनो को अमूल्य सेवाए प्रदत्त करा रहे है। अमित मेहता जीतो के FCP ,जैन लैब के TRUSTY है तथा जैन लैब और राजस्थान संघ से भी जुड़े है। आशीष जैन य़ुवक मंडल और जीतो से जुड़े हुए है। ​आप की पत्नी श्रीमती चन्द्रप्रभा ​मेहता कुशल गृहिणी और सुश्रविका है तथा आपने मासखमण कि भी तपस्या की है। आप जैन महिला मंडल ,हनुमंत नगर की उपाध्यक्षा है। आपने सदेव समाज तथा सामाजिक मसलो को अहमियत दी है तथा आपका कहना है कि ​समाज है तो समाज में संगठन ही सर्वोत्तम है ..संगठन ही समाजोत्थान का आधार है ..संगठन बिना समाज का उत्थान संभव नहीं . उम्र के इस अहम् पड़ाव पर भी आप सक्रियता से जन हित और व्यापारिक हित में सर्वस्व न्यौच्चावर किये हुए है तथा अपनी जिन्दा-दिल्ली,जीवन्तता,कार्य कुशलता और जीवटता बखूबी कायम रखे हुए है। आप श्री का मानना है कि सबसे बड़ी जरुरत है घर की एकता, परिवार की एकता की । क्योंकि जब तक घर की एकता नहीं होगी- तब तक समाज, राष्ट्र, विश्व की एकता संभव नहीं । संगठन ही समाज को विकासशील एवं प्रगतिशील बना सक ​ता ​ है । समाज ​में संगठन से एकता का जन्म होता है एवं एकता से ही शांति एवं आनंद की वृष्टि होती है । इसलिए हम सब के लिए यही संकेत है ​कि एकता के सूत्र को चरितार्थ कर समाज को गौरवान्वित करें । ​​ ​आप व्यवहार धर्म के साथ जैन धर्म की भी ​अनुमोदना करते रहते है। समय समय पर तप -तपस्या -सामयिक-स्वाध्याय में आप बढ़-चढ़ कर हिस्सेदारी दर्ज कराते है। हमारे कोई जैन बंधू रुपये पैसे के अभाव में हीनता का शिकार ना हो , आप एक स्वधर्मी कोष का गठन कर उसका संचालन कर रहे है तथा "अपनों की सेवा -अपनों के द्वारा " का कुशलता से सम्पादन कर रहे है। संघ - समाज में जैनत्व का गौरव जगे ,मर्यादाओ का रक्षण हो और आडम्बर हीन साधना में जैन समाज गतिशील हो ,ऐसे नए आयाम प्रस्तुत करते है। आप सकारात्मक चिंतन लेकर चलने वाले पुरुषार्थी है तथा जीवन में सरलता ,सहजता,कथनी-करनी की एकरूपता और सबके साथ समन्वय आप श्री की विशिष्ट खूबी है। आप श्री का चुम्बकीय आकर्षण सब के मन को भाता है। मोक्ष वाहिनी योजना के आप संयोजक है तथा किसी के स्वर्गवास होने पर उनकी अंतिम यात्रा सुखद हो उसका बेहतरीन सञ्चालन कर रहे है। आप बहुमुखी प्रतिभा के धनी है। ​ आप एक कुशल व्यवसायी,बिल्डर, विश्लेषक ,सामाजिक कार्यकर्ता और प्रशिक्षक है तथा आदर्श कॉलेज में हजारो छात्रो के साथ तालमेल और समन्वय के माध्यम से शैक्षणिक क्षेत्र में भी विशेष सहकार प्रदान कर रहे है। आप श्री की लोकप्रियता समाज में इतनी है कि एक बार बीड़ा उठा लिया तो उसे अंजाम तक पहुंचाए बिना आप चैन की सांस नहीं लेते। परिवार के सबसे लोकप्रिय और मिलनसार व्यक्तित्व के धनी है। सटीक नेतृत्व , समय की पाबंदी , सार्थक जानकार , सारगर्भित वक्तव्य आप श्री की विशेषता है। आप कई संघ संस्थनों से जुड़े है पर कुछ का विवरण इस तरह से है। ​आप कई देश विदेश का भ्रमण कर चुके है। ​ ​​ Thanks a lot.. Regards.. ​SAJJAN RAJ MEHTA​ Padam Raj Mehta.. TREASURER..ADARSH COLEGE..BANGALORE EX. President.Karnataka Hosiery & Garment Assn. WORKING PRESEIDENT.. Shri Jain Ratna Hiteshi Shravak Sangh..Karnataka VICE PRESIDENT & EX SECRETARY...Shri Vardhman Sthanakvasi Jain Shravak Sangh..Hanumantnagar EX.PRESIDENT & EX.SECRETARY..Jodhpur Association.Bangalore CHAIRMAN..MOKSH VAHINI ..RAJASTHAN SANGH MENTOR...BHAGWAAN MAHAVEER JAIN LAB..HANUMANT NAGAR PATRON..JAIN INTERNATIONAL TRADE ORGANISATION ( JITO ) MEMBER..BBUL JAIN VIDYALAYA MEMBER...BHAGWAN MAHAVEER JAIN HOSPITAL MEMBER..JAIN CONFERENCE,,,

जैन युवा संगठन द्वारा " जैन एकता क्यों है जरुरी का ​विमोचन ​

प्रेस-समाचार > > जैन युवा संगठन द्वारा " जैन एकता क्यों है जरुरी का ​विमोचन ​ विमोचन भगवान् महावीर जन्म कल्याणक के भव्य महोत्सव में सुसम्पन्न। > > > संगठन पिचले काफी वर्षो से जैन एकता हेतु प्रयासरत है तथा समस्त जैन समाज का पिचले २५ वर्षो से भरपूर स्नेह,सहकार तथा सानिध्य प्राप्त है। ​जाने अनजाने में ही सही एक संवत्सरी के आयोजन और जैन समन्वय एवं एकता आपस में बढे , के स्वर मुखरित हो रहे है। . > > इसी कड़ी में जैन युवा संगठन के तहत जैन समन्वय समिति का गठन किया गया है जिसका संयोजन का प्रभार पूर्व अध्यक्ष जैन सज्जन राज मेहता को सौंपा गया था और उन्होंने संगठन के सदस्यों और पदाधिकारियो के साथ बैंगलोर में विराजित चारित्र आत्माओं से निवेदन किया था कि " जैन एकता - क्यों है जरुरी "उस पर अपने विस्तृत विचारों से अवगत करावे जिससे जैन एकता के क्षेत्र में और ज्यादा प्रगति हो। पुरे देश भर से ग़ुरु भगवन्तो तथा प्रबुद्ध जनो की सकारात्मक प्रतिक्रिया प्राप्त हुई है तथा प्राप्त सुझावों को समाहित कर करीब 5000 पुस्तिका का प्रकाशन ​किया ​ गया है और विमोचन 13 .4.13 को भव्य महोत्सव में किया ​गया। ​ समस्त संस्थाओं को यह प्रेषित की ​जा रही है। ​ समस्त जैन समाज का कल्याण हो तथा एक स्वर में जैनत्व के उत्थान हेतु सब प्रयास रत रहे ,येही मंगल मनीषा है। . प्राप्त सुझावों को समाहित कर समस्त जैन समाज के चिंतन और मनन से आगे की प्रक्रिया को अंतिम रूप दिया जाएगा। इस पुस्तिका में विज्ञापन दाता के रूप में हमारे अपने कर्मठ कार्यकरता श्री विमल कटारिया , श्री दिनेश खिंवसरा तथा युवा कार्यकर्ता तेरापंथ समाज के श्री राजेश चावत और गारमेंट व्यवसायी श्री गनपत जैन का विशेष सहयोग प्राप्त हुआ है । ​ विमोचन के दौरान संगठन के सभी पदाधिकारी तथा प्रकाशन के सहयोगी भी मौजूद थे और उपस्थित आचार्य प्रवर श्री यशोदेव सुरिश्वर जी ,आचार्य प्रवर श्री चन्द्र यश सुरिस्वर जी , महासती दर्शन प्रभा जी , महासती रिद्धी श्री , महासती सुमन प्रभा जी , आदि ठाणा तथा समस्त साध्वी वृंद और समणी वृंद के सानिध्य में हुआ। ​ सह संयोजक श्री पवन mandot एवं जैन गौतम मेहता तथा समस्त पदाधिकारियो का भी विशेष सहकार रहा है । ​आपसे सविनय प्रार्थना है कि इस समाचार को भी प्राथमिकता प्रदान करे। ​पुस्तिका की प्रतिया भी सम्प्रेषित की जा रही है अतः; आप इसे पढ़ कर समीक्षा भी छपवाने का सुप्रयास कर हमें कृतार्थ करे। जैन एकता जिंदाबाद जय महावीर। जय जिनेन्द्र सा > > सधन्यवाद > > जैन सज्जन राज मेहता संयोजक जैन समन्वय समिति ​पूर्व अध्यक्ष जैन युवा संगठन ​

एकता एक मशाल है जो सही राह दिखाती है ।

एकता एक मशाल है जो सही राह दिखाती है । बिखराव एक चिंगारी है जो खुद को जलाती है। एकता एक मशाल है जो सही राह दिखाती है। एकता चूल्हे में जलती हुई आग है जीवन की बीणा पर बजता हुआ राग है। बिखराव बेचैनी है, कमजोरी है,दुर्भाग्य है। एकता शांति है, सुकून है सौभाग्य है। बिखराव का रास्ता इतिहास में ले जाता है। एकता का रास्ता भविष्य बनाता है। एकता हमारा नारा हो। सुंदर भविष्य हमारा हो। बदलाव के लिए सिर्फ एक क्षण ही काफी है- यह सूक्त जिस दिन जेहन में आया तो मन में वैचारिक द्वन्द शुरू हो गया। क्या एक ही क्षण में अपेक्षित बदलाब की बयार लायी जा सकती है ? बदलना इतना आसान नहीं होता जितना हम समझते है ,सोचते है , चिंतन करते है। इसके लिए बिना पानी तड़पती मछली जैसी छटपटाहट चाहिए। अंतहीन आसमान में उड़ान भरते पक्षी जैसा आत्मविश्वास और अर्जुन जैसी लक्ष्य वेधक दृष्टि चाहिए। अथाह सागर में नन्ही सी नौका द्वारा उस पार पहुँच जाने जैसा संकल्प,साहस आर निष्ठां चाहिए। संकल्प पुरे होते है , स्वप्न नहीं। अपनी वृतियों को देखने और सुधारने की प्रवृति चाहिए। एकता का अर्थ यह नहीं होता कि किसी विषय पर मतभेद ही न हो। मतभेद होने के बावजूद भी जो सुखद और सबके हित में है उसे एक रूप में सभी स्वीकार कर ले। ​जैन​ एकता से अभिप्राय है सभी ​स्वधर्मी बंधू ​जैनत्व से ओत-प्रोत हों ​, हम ​ सभी पहले ​जैन ​ हों,फिर ​तेरापंथी , स्थानकवासी,मंदिर मार्गी या दिगंबर ​ । ​ ​ एकता ही समाज का दीपक है- एकता ही शांति का खजाना है। संगठन ही सर्वोत्कृषष्ट शक्ति है। संगठन ही समाजोत्थान का आधार है। संगठन बिन समाज का उत्थान संभव नहीं। एकता के बिना समाज आदर्श स्थापित नहीं कर सकता।, क्योंकि एकता ही समाज एवं देश के लिए अमोघ शक्ति है, वहीँ विघटन समाज के लिए विनाशक शक्ति है ​ . ​ एकता का मतलब ही होता है,समाज ​के सब घटकों में भिन्न-भिन्न विचारों और विभिन्न आस्थाओं के होते हुए भी आपसी प्रेम, एकता और भाईचारे का बना रहना। ​ ​ सामाजिक ​एकता में केवल शारीरिक समीपता ही महत्वपूर्ण नहीं होती बल्कि उसमें मानसिक,बौद्धिक, वैचारिक और भावात्मक निकटता की समानता आवश्यक है।विघटन समाज को तोड़ता है और संगठन व्यक्ति को जोड़ता है। संगठन समाज एवं देश को उन्नति के शिखर पर पहुंचा देता है। आपसी फूट एवं समाज का विनाश कर देती है। धागा यदि संगठित होकर एक जाए तो ​वह ​ ​ हठी जैसे शक्तिशाली जानवर को भी बांध सकता है। किन्तु वही धागे यदि अलग-अलग रहें तो वे एक तृण को भी बाँधने में असमर्थ होते हैं। विघटित ५०० से – संगठित ५ श्रेष्ठ हैं। जैन समाज भिन्न-भिन्न आम्नाओ का पालक ​ है फिर भी समूचे विश्व में अपनी एक अलग पहचान रखता है। अलग-अलग संस्कृति और भाषाएं होते हुए भी हम सभी कई मूल विषयो पर एक सूत्र में बंधे हुए हैं तथा जैन समाज ​ की एकता व अखंडता को अक्षुण्ण रखने के लिए सदैव तत्पर रहते है.​बिखरा हुआ व्यक्ति टूटता है- बिखरा समाज टूटता है- बिखराव में उन्नति नहीं अवनति होती है- बिखराव किसी भी क्षेत्र में अच्छा नहीं। ​बांटने के लिए यहाँ भगवान् बाँट लिए है बांटने के लिए यहाँ धर्म-स्थान बाँट लिए है बांटने के फेर में निमित्त बन रहे है हम अगर बांटने के लिए यहाँ देह से प्राण बाँट लिए है ​ भारत विभिन्न संस्कृतियों,धर्मों और सम्प्रदायों का संगम स्थल है। यहां सभी धर्मों और सम्प्रदायों को बराबर का दर्जा मिला है। हिंदु धर्म के अलावा जैन,बौद्ध और सिक्ख धर्म का उद्भव यहीं हुआ है। अनेकता के बावजूद उनमें एकता है। यही कारण है कि सदियों से उनमें एकता के भाव परिलक्षित होते रहे हैं। शुरू से हमारा दृष्टिकोण उदारवादी है। हम सत्य और अहिंसा का आदर करते हैं। समाज एकता की चर्चा करने के पूर्व आवश्यकता है- घर की एकता, परिवार की एकता की। क्योंकि जब तक घर की एकता नहीं होगी- तब तक समाज, राष्ट्र, विश्व की एकता संभव नहीं। एकता ही समाज को विकासशील बना सकती है। समाज के संगठन से एकता का जन्म होता है एवं एकता से ही शांति एवं आनंद की वृष्टि होती है। एक बार हाथ की उंगलियों में बहस चल पड़ी। अंगूठा कहने लगा कि मैं सब उंगलियो से बड़ा हूं। उसके बराबर वाली उंगली कहने लगी, “नहीं, तुम नहीं, सब से बड़ी मैं हूं।” बाकी तीनों उंगलियों ने भी इसी प्रकार स्वयं को श्रेष्ठ कहा। निर्णय न हो सका तो सब अदालत में पहंचे। न्यायाधीश ने अंगूठे से प्रश्न किया, “भई मियां अंगूठे, तुम कैसे बड़े हो गए?” अंगूठे ने कहा, “मैं सब में से अधिक पढ़ा-लिखा हूं। अनपढ़ लोग हस्ताक्षर के स्थान पर मेरा ही उपयोग करते हैं।” अंगूठे के बराबर वाली उंगली ने कहा, “मैं इसलिए बड़ी हूं कि मुसलमान भाई मुझे शहादत की उंगली कहते हैं। मैं बताती हूं कि ईश्वर एक है। सब की पहचान के लिए भी मेरा उपयोग किया जाता है।” उसके बाद वाली उंगली ने कहा, “मैं इसलिए बड़ी हूं कि आप लोगों ने मुझे नापा नहीं। नाप कर तो देखो, लम्बाई अर्थात कद मे सब से बड़ी मैं ही हूं।” चौथी उंगली ने कहा, “मैं इसलिए बड़ी हूं कि मेरी गरदन में लोग सोने, चांदी, हीरे-जवाहरातों की कीमती अंगूठियां डालते हैं।” सब से छोटी उंगली ने कहा, “मैं इसलिए बड़ी हूं कि शर्त लगाने के लिये मेरा उपयोग किया जाता है।” न्यायाधीश सोच में पड़ गये। फिर आदेश दिया कि प्लेट में एक रसगुल्ला लाया जाए। रसगुल्ला आ गया, तो उन्होंने अंगूठे से कहा, “रसगुल्ला उठाओ।” अंगूठे ने भरसक प्रयत्न किया, किन्तु वह रसगुल्ला उठा न सका। फिर अंगूठे के बराबर वाली उंगली से कहा गया। वह भी रसगुल्ला न उठा सकी। इस प्रकार बारी-बारी सारी उंगलियों से कहा गया, किन्तु कोई भी अकेले रसगुल्ला न उठा सकी। तब न्यायाधीश ने पांचों उंगलियों से कहा, “अब तुम सब मिलकर उठाओ।” पांचों उंगलियों ने एक साथ मिल कर रसगुल्ला उठा लिया। न्यायाधीश बोले, “आप लोगों ने अलग-अलग प्रयत्न किया, तो रसगुल्ला उठा नहीं सकीं। सब ने मिल कर उठाने की चेष्टा की, तो रसगुल्ला आसानी से उठा लिया। इसलिए आप में से कोई एक बड़ा नहीं है। आप सभी बड़ी हैं। यह भी समझ लें कि एकता से मिलजुल कर रहें तो कोई काम कठिन नहीं। एकता में ही शक्ति है।” ​सकारात्मक दृष्टिकोण ही सफलता का मूल मंत्र है। जीवन के लम्बे सफ़र में अनेक अनुकूल व् प्रतिकूल परिस्थितिओं से गुजरते हुए जिनका नजरिए सकारात्मक होया है वह अँधेरी रात में भी उल्लास के और विश्वास के साथ सवेरे की प्रतीक्षा करता है। हमारा सटीक और सार्थक चिंतन सफलता और असफलता के मापदंड निर्धारित करने में सहायक है। मनुष्य वही बनता है जो सोचता है। जैसे संकल्प होते है वैसी सृष्टि बन जाती है। हम दृष्टि को बदले , सृष्टि बदल जायेगी। ​ ​नजर बदली तो नजारा बदल गया किश्ती ने रुख बदला तो किनारा बदल गया ​ अब तक के प्रयासो का सुखद प्रतिफल सत्कार्यो की जितनी प्रशंसा हो , कम है । गर्व से कहु तो सीना चौड़ा हो जाता है जब में यह बात साझा करू कि समस्त गुरु भगवंतों के सानिध्य में समस्त जैन समाज का वरद हस्त प्राप्त कर जैन युवा संगठन , बैंगलोर .सुह्रदयी .समर्पित .सदगुणी .सक्षम .संकल्पित और सकारात्मक सोच के धनी जैन गौतम मेहता एवं समर्पित युवा शक्ति के साथ के साथ कंधे से कंधा मिलाते हुए सामूहिक भगवान् महावीर जन्म कल्याणक की इस बार रजत जयंती मना रहे है अर्थात 25 वां आयोजन । विश्व भर में इस तरह का अनूठा कारनामा जैन एकता को बढ़ावा देने की कड़ी में अनुमोदनीय और प्रशंसनीय है। आचार्य प्रवर शिव मुनि सा ने इस वर्ष को जैन एकता वर्ष के रूप में मनाने की उद्घोषणा कर ही दी है। मुंबई में भी इस बार जैन समाज ने बीड़ा उठाया है तथा जैन एकता का बिगुल बजा दिया है। इस बार सामूहिक भगवान् महावीर जन्म कल्याणक महोत्सव का भव्य आयोजन आयोजित होने जा रहा है। अरिहंत भगवान् की दिव्य आशीष से और (चलते फिरते तीर्थ कह दू तो कोई आतिशयोक्ति नहीं होगी ) हमारे पूज्य जैन साधू साध्वी की मंगल मय उपस्थिति तथा शुभाशीर्वाद से जिन शासन की शान में निरंतर उत्तरोतर प्रगत्ति हो , यही शुभेच्छा है । एकता के अभिनव आयामों को हम सब मिलकर सुखद अंजाम तक पहुंचाए । हम सब जैन है की गूंज हर जैनी के अंतर्मन को झकझोरे तथा संगठित प्रयासों से जैनत्व का चहुंमुखी प्रचार प्रसार हो । अहिंसा , संयम और तप को हम सब आत्मसात करे । एकता बिन जिंदगी दुश्वार है, हम एक हों एकता ही जिंदगी का सार है, हम एक हों। बिखराव हमें कहीं नहीं पहुंचा सकता एकता ही वक्त की पुकार है, हम एक हों । एकता के प्रयासो को नि;स्वार्थ सहयोग करने वालों को नमन सधन्यवाद जैन सज्जन राज मेहता समन्वयक .. जैन समन्वय समिति EX.PRESIDENT..JAIN YUVA SANGATHAN..BANGALORE [Image]

Saturday, April 19, 2014

अज्ञान के असीम अन्धकार में भटकते हुए सांसारिक प्राणियों को सम्यग्ज्ञान का आलोक प्रदान करने वाले प्रभु महावीर

अज्ञान के असीम अन्धकार में भटकते हुए सांसारिक प्राणियों को सम्यग्ज्ञान का आलोक प्रदान करने वाले प्रभु महावीर वर्तमान में जो धर्मशासन गतिमान है ,उसके अधिपति चरम तीर्थंकर भगवान महावीर स्वामी है। माध्यम भगवान् महावीर की वह वाणी है जिसे उनके प्रधान शिष्य गणधरों ने शास्त्र का स्वरुप प्रदान किया और स्थविर भगवंतों ने बाद में लिपिबद्ध किया। इस शासन के संचालक - सूत्रधार शिष्य प्रशिष्य परम्परा से होने वाले संत है। शासनपति हम सभी आत्म कल्याण के अभिलाषियों के लिए सदा ​अनुकरणीय और ​ स्मरणीय है। ​सही को सही नहीं मानने रूप या सही को गलत और गलत को सही मानने रूप मिथ्यात्व ​ अज्ञान के असीम अन्धकार में भटकते हुए सांसारिक प्राणियों को सम्यग्ज्ञान का आलोक प्रदान करने वाले वहीँ है, इस कृतज्ञता के तथा गुणों के प्रति आदर भावना की दृष्टि से वे चिर-स्मरणीय भी है। गुणों की दृष्टि से सभी तीर्थंकर समान होते है तथा वन्दनीय तथा स्मरणीय है। तीर्थंकर महावीर ने अहिंसा का अमृत ना पिलाया होता और सत्य की सुधा- ​धा​ रा प्रवाहित ना की होती तो इस जगत की क्या स्थिति होती ? मानव, दानव बन गया होता , धारा ने रौरव का रूप धारण कर लिया होता। भगवान ने अपनी साधना पुट दिव्य - ध्वनि के द्वारा मनुष्य की मूर्छित चेतना को संज्ञा प्रदान की , दानवी व्रतियो का शमन करने के लिए दैवी भावना जाग्रत की और मनुष्य में फैले हुए नाना प्रकार के भ्रम के सघन कोहरे को छिन्न-भिन्न करके विमल आलोक की प्रकाशपूर्ण किरणे विस्तीर्ण की। प्रश्न उठ सकता है कि संसार का अपार उपकार करने वाले भगवान् के निर्वाण को कल्याणक क्यों कहा गया है ? इसका उत्तर यह है कि लोकोत्तर पुरुष दूसरे पामर प्राणियो जैसे नहीं होते। वे आते समय ​प्रे​ रणा लेकर आते है और जाते समय भी प्रेरणा देकर जाते है अतएव महापुरुषों का जन्म भी कल्याणकारी होता है और निर्वाण भी। भगवान् महावीर मृत्युंजय थे। उन्होंने आध्यात्मिक जगत की चरम सिद्धि प्राप्त की। अपने साधनाकाल में उन्होंने अन्धकार का भेदन किया। प्रत्येक स्थिति में समभाव धारण किये हुए रहे। ​स्वयं ने साढ़े बारह वर्षों की उग्र तपस्या,साधना के पश्चात ​जाग्रत होकर सुषुप्त जनों की आत्मा को जाग्रत किया और अंत में मुक्ति को प्राप्त हुए।भगवान के चरि ​त्र ​ को पढ़ने और सुनने वाले के अन्तः;क ​रण ​ में उत्कंठा जाग्रत होती है कि हम भी निर्वाण प्राप्त करे। वीतराग की सेवा किस प्रकार ​की​ जा सकती है ? वीतराग के निकट पहुँच कर उनकी इच्छा के विपरीत कार्य करना सेवा नहीं है। उनके गुणों के प्रति निष्कपट प्रीति होना , प्रमोद भाव होना और उनके द्वारा उपदिष्ट सम्यक ज्ञान,दर्शन और चारित्र के मार्ग पर चलना ही वीतराग की सच्ची सेवा है। महावीर की आत्मा को पहचानना और उससे प्रेरणा प्राप्त करना ही वास्तव में महावीर की पूजा है।सांप्रदायिक रंग में रंगने से महापुरुषो का रूप बदल जाता है। यदि उपासना का मूल आधार मान लिया जाय तो सारी विडम्बनाएं ही समाप्त हो जाए।"गुणा पूजास्थानम् " इस उक्ति को कार्यान्वित करने की प्रबलावश्यकता है। मनोवृति जब तक वीतराग मय नहीं हो जाती तब तक इस जीवन में भी निराकुलता और शान्ति प्राप्त नहीं हो सकती। जितने ​-२​ अंशों में वीतरागता का विकास होता जाता है, उतने ही अंशो में शान्ति सुलभ हो जाती है।वीतराग के प्रति प्रमोद का अनुभव करना ही वीतरागता के प्रति बढ़ने का पहला कदम है। चित में आराध्या,आराधक और आराधना का कोई विकल्प नहीं रह जाना - तीनों का एकरूप हो जाना अर्थात भेद प्रतीति का विलीन हो जाना ही सच्ची आराधना है। जब आत्मा अपने ही स्वरुप में रमण करती है और ब्राह जगत के साथ उसका कोई लगाव नहीं रह जाता है , वहीँ ध्याता,वहीँ ध्येय और वहीँ ध्यान के रूप में परिणत हो जाता है - निर्विकल्प समाधि की दशा प्राप्त कर लेता है तभी उसकी अनंत शक्तिया जागृत होती हैं। भगवान् महावीर "लोकप्रदीप " थे और वे स्वयं प्रकाशमय थे और समस्त जगत को प्रकाश प्रदत्त करने वाले थे। उस लोकोत्तर प्रदीप ने समस्त संसार को सन्मार्ग पर प्रशस्त किया और कुमार्ग पर जाने से रोका और अज्ञानरुपी अन्धकार का निवारण किया। किन्तु वह प्रदीप इस लोक में नहीं रहा , उनकी पावन और पुण्य स्मृति ​तथा बताया हुआ सन्मार्ग ​ ही हमारे लिए ​अनुमोदनीय और अनुकरणीय रह गया है। अगर हम उनके चरण चिन्हों को देख कर उनके मार्ग पर चलेंगे जिन्होनें सिद्धि प्राप्त ​की ​ हैं या आत्मोत्थान के पथ ​ ​ के पथिक है तो जो सिद्धि गौतम प्रभु को मिली वह हमें भी मिल सकती है। इस पावन सन्देश को समझ कर यदि ​हम​ आचरण करेंगे तो हमारा ​ ​ भ ​ विष्य भी आलोकमय बन जाएगा। ​भगवान् महावीर जन्म कल्याणक की मंगल मनीषाये। .समस्त जगत का कल्याण हो। जय जिनेन्द्र - जय महावीर - जय जैन एकता आभार। आपका ही अपना ​संकलन करता ​ जैन सज्जन राज मेहता संयोजक जैन समन्वय समिति। .BANGALORE पूर्व अध्यक्ष। जैन युवा संगठन 09845501150