Sunday, April 20, 2014

एकता एक मशाल है जो सही राह दिखाती है ।

एकता एक मशाल है जो सही राह दिखाती है । बिखराव एक चिंगारी है जो खुद को जलाती है। एकता एक मशाल है जो सही राह दिखाती है। एकता चूल्हे में जलती हुई आग है जीवन की बीणा पर बजता हुआ राग है। बिखराव बेचैनी है, कमजोरी है,दुर्भाग्य है। एकता शांति है, सुकून है सौभाग्य है। बिखराव का रास्ता इतिहास में ले जाता है। एकता का रास्ता भविष्य बनाता है। एकता हमारा नारा हो। सुंदर भविष्य हमारा हो। बदलाव के लिए सिर्फ एक क्षण ही काफी है- यह सूक्त जिस दिन जेहन में आया तो मन में वैचारिक द्वन्द शुरू हो गया। क्या एक ही क्षण में अपेक्षित बदलाब की बयार लायी जा सकती है ? बदलना इतना आसान नहीं होता जितना हम समझते है ,सोचते है , चिंतन करते है। इसके लिए बिना पानी तड़पती मछली जैसी छटपटाहट चाहिए। अंतहीन आसमान में उड़ान भरते पक्षी जैसा आत्मविश्वास और अर्जुन जैसी लक्ष्य वेधक दृष्टि चाहिए। अथाह सागर में नन्ही सी नौका द्वारा उस पार पहुँच जाने जैसा संकल्प,साहस आर निष्ठां चाहिए। संकल्प पुरे होते है , स्वप्न नहीं। अपनी वृतियों को देखने और सुधारने की प्रवृति चाहिए। एकता का अर्थ यह नहीं होता कि किसी विषय पर मतभेद ही न हो। मतभेद होने के बावजूद भी जो सुखद और सबके हित में है उसे एक रूप में सभी स्वीकार कर ले। ​जैन​ एकता से अभिप्राय है सभी ​स्वधर्मी बंधू ​जैनत्व से ओत-प्रोत हों ​, हम ​ सभी पहले ​जैन ​ हों,फिर ​तेरापंथी , स्थानकवासी,मंदिर मार्गी या दिगंबर ​ । ​ ​ एकता ही समाज का दीपक है- एकता ही शांति का खजाना है। संगठन ही सर्वोत्कृषष्ट शक्ति है। संगठन ही समाजोत्थान का आधार है। संगठन बिन समाज का उत्थान संभव नहीं। एकता के बिना समाज आदर्श स्थापित नहीं कर सकता।, क्योंकि एकता ही समाज एवं देश के लिए अमोघ शक्ति है, वहीँ विघटन समाज के लिए विनाशक शक्ति है ​ . ​ एकता का मतलब ही होता है,समाज ​के सब घटकों में भिन्न-भिन्न विचारों और विभिन्न आस्थाओं के होते हुए भी आपसी प्रेम, एकता और भाईचारे का बना रहना। ​ ​ सामाजिक ​एकता में केवल शारीरिक समीपता ही महत्वपूर्ण नहीं होती बल्कि उसमें मानसिक,बौद्धिक, वैचारिक और भावात्मक निकटता की समानता आवश्यक है।विघटन समाज को तोड़ता है और संगठन व्यक्ति को जोड़ता है। संगठन समाज एवं देश को उन्नति के शिखर पर पहुंचा देता है। आपसी फूट एवं समाज का विनाश कर देती है। धागा यदि संगठित होकर एक जाए तो ​वह ​ ​ हठी जैसे शक्तिशाली जानवर को भी बांध सकता है। किन्तु वही धागे यदि अलग-अलग रहें तो वे एक तृण को भी बाँधने में असमर्थ होते हैं। विघटित ५०० से – संगठित ५ श्रेष्ठ हैं। जैन समाज भिन्न-भिन्न आम्नाओ का पालक ​ है फिर भी समूचे विश्व में अपनी एक अलग पहचान रखता है। अलग-अलग संस्कृति और भाषाएं होते हुए भी हम सभी कई मूल विषयो पर एक सूत्र में बंधे हुए हैं तथा जैन समाज ​ की एकता व अखंडता को अक्षुण्ण रखने के लिए सदैव तत्पर रहते है.​बिखरा हुआ व्यक्ति टूटता है- बिखरा समाज टूटता है- बिखराव में उन्नति नहीं अवनति होती है- बिखराव किसी भी क्षेत्र में अच्छा नहीं। ​बांटने के लिए यहाँ भगवान् बाँट लिए है बांटने के लिए यहाँ धर्म-स्थान बाँट लिए है बांटने के फेर में निमित्त बन रहे है हम अगर बांटने के लिए यहाँ देह से प्राण बाँट लिए है ​ भारत विभिन्न संस्कृतियों,धर्मों और सम्प्रदायों का संगम स्थल है। यहां सभी धर्मों और सम्प्रदायों को बराबर का दर्जा मिला है। हिंदु धर्म के अलावा जैन,बौद्ध और सिक्ख धर्म का उद्भव यहीं हुआ है। अनेकता के बावजूद उनमें एकता है। यही कारण है कि सदियों से उनमें एकता के भाव परिलक्षित होते रहे हैं। शुरू से हमारा दृष्टिकोण उदारवादी है। हम सत्य और अहिंसा का आदर करते हैं। समाज एकता की चर्चा करने के पूर्व आवश्यकता है- घर की एकता, परिवार की एकता की। क्योंकि जब तक घर की एकता नहीं होगी- तब तक समाज, राष्ट्र, विश्व की एकता संभव नहीं। एकता ही समाज को विकासशील बना सकती है। समाज के संगठन से एकता का जन्म होता है एवं एकता से ही शांति एवं आनंद की वृष्टि होती है। एक बार हाथ की उंगलियों में बहस चल पड़ी। अंगूठा कहने लगा कि मैं सब उंगलियो से बड़ा हूं। उसके बराबर वाली उंगली कहने लगी, “नहीं, तुम नहीं, सब से बड़ी मैं हूं।” बाकी तीनों उंगलियों ने भी इसी प्रकार स्वयं को श्रेष्ठ कहा। निर्णय न हो सका तो सब अदालत में पहंचे। न्यायाधीश ने अंगूठे से प्रश्न किया, “भई मियां अंगूठे, तुम कैसे बड़े हो गए?” अंगूठे ने कहा, “मैं सब में से अधिक पढ़ा-लिखा हूं। अनपढ़ लोग हस्ताक्षर के स्थान पर मेरा ही उपयोग करते हैं।” अंगूठे के बराबर वाली उंगली ने कहा, “मैं इसलिए बड़ी हूं कि मुसलमान भाई मुझे शहादत की उंगली कहते हैं। मैं बताती हूं कि ईश्वर एक है। सब की पहचान के लिए भी मेरा उपयोग किया जाता है।” उसके बाद वाली उंगली ने कहा, “मैं इसलिए बड़ी हूं कि आप लोगों ने मुझे नापा नहीं। नाप कर तो देखो, लम्बाई अर्थात कद मे सब से बड़ी मैं ही हूं।” चौथी उंगली ने कहा, “मैं इसलिए बड़ी हूं कि मेरी गरदन में लोग सोने, चांदी, हीरे-जवाहरातों की कीमती अंगूठियां डालते हैं।” सब से छोटी उंगली ने कहा, “मैं इसलिए बड़ी हूं कि शर्त लगाने के लिये मेरा उपयोग किया जाता है।” न्यायाधीश सोच में पड़ गये। फिर आदेश दिया कि प्लेट में एक रसगुल्ला लाया जाए। रसगुल्ला आ गया, तो उन्होंने अंगूठे से कहा, “रसगुल्ला उठाओ।” अंगूठे ने भरसक प्रयत्न किया, किन्तु वह रसगुल्ला उठा न सका। फिर अंगूठे के बराबर वाली उंगली से कहा गया। वह भी रसगुल्ला न उठा सकी। इस प्रकार बारी-बारी सारी उंगलियों से कहा गया, किन्तु कोई भी अकेले रसगुल्ला न उठा सकी। तब न्यायाधीश ने पांचों उंगलियों से कहा, “अब तुम सब मिलकर उठाओ।” पांचों उंगलियों ने एक साथ मिल कर रसगुल्ला उठा लिया। न्यायाधीश बोले, “आप लोगों ने अलग-अलग प्रयत्न किया, तो रसगुल्ला उठा नहीं सकीं। सब ने मिल कर उठाने की चेष्टा की, तो रसगुल्ला आसानी से उठा लिया। इसलिए आप में से कोई एक बड़ा नहीं है। आप सभी बड़ी हैं। यह भी समझ लें कि एकता से मिलजुल कर रहें तो कोई काम कठिन नहीं। एकता में ही शक्ति है।” ​सकारात्मक दृष्टिकोण ही सफलता का मूल मंत्र है। जीवन के लम्बे सफ़र में अनेक अनुकूल व् प्रतिकूल परिस्थितिओं से गुजरते हुए जिनका नजरिए सकारात्मक होया है वह अँधेरी रात में भी उल्लास के और विश्वास के साथ सवेरे की प्रतीक्षा करता है। हमारा सटीक और सार्थक चिंतन सफलता और असफलता के मापदंड निर्धारित करने में सहायक है। मनुष्य वही बनता है जो सोचता है। जैसे संकल्प होते है वैसी सृष्टि बन जाती है। हम दृष्टि को बदले , सृष्टि बदल जायेगी। ​ ​नजर बदली तो नजारा बदल गया किश्ती ने रुख बदला तो किनारा बदल गया ​ अब तक के प्रयासो का सुखद प्रतिफल सत्कार्यो की जितनी प्रशंसा हो , कम है । गर्व से कहु तो सीना चौड़ा हो जाता है जब में यह बात साझा करू कि समस्त गुरु भगवंतों के सानिध्य में समस्त जैन समाज का वरद हस्त प्राप्त कर जैन युवा संगठन , बैंगलोर .सुह्रदयी .समर्पित .सदगुणी .सक्षम .संकल्पित और सकारात्मक सोच के धनी जैन गौतम मेहता एवं समर्पित युवा शक्ति के साथ के साथ कंधे से कंधा मिलाते हुए सामूहिक भगवान् महावीर जन्म कल्याणक की इस बार रजत जयंती मना रहे है अर्थात 25 वां आयोजन । विश्व भर में इस तरह का अनूठा कारनामा जैन एकता को बढ़ावा देने की कड़ी में अनुमोदनीय और प्रशंसनीय है। आचार्य प्रवर शिव मुनि सा ने इस वर्ष को जैन एकता वर्ष के रूप में मनाने की उद्घोषणा कर ही दी है। मुंबई में भी इस बार जैन समाज ने बीड़ा उठाया है तथा जैन एकता का बिगुल बजा दिया है। इस बार सामूहिक भगवान् महावीर जन्म कल्याणक महोत्सव का भव्य आयोजन आयोजित होने जा रहा है। अरिहंत भगवान् की दिव्य आशीष से और (चलते फिरते तीर्थ कह दू तो कोई आतिशयोक्ति नहीं होगी ) हमारे पूज्य जैन साधू साध्वी की मंगल मय उपस्थिति तथा शुभाशीर्वाद से जिन शासन की शान में निरंतर उत्तरोतर प्रगत्ति हो , यही शुभेच्छा है । एकता के अभिनव आयामों को हम सब मिलकर सुखद अंजाम तक पहुंचाए । हम सब जैन है की गूंज हर जैनी के अंतर्मन को झकझोरे तथा संगठित प्रयासों से जैनत्व का चहुंमुखी प्रचार प्रसार हो । अहिंसा , संयम और तप को हम सब आत्मसात करे । एकता बिन जिंदगी दुश्वार है, हम एक हों एकता ही जिंदगी का सार है, हम एक हों। बिखराव हमें कहीं नहीं पहुंचा सकता एकता ही वक्त की पुकार है, हम एक हों । एकता के प्रयासो को नि;स्वार्थ सहयोग करने वालों को नमन सधन्यवाद जैन सज्जन राज मेहता समन्वयक .. जैन समन्वय समिति EX.PRESIDENT..JAIN YUVA SANGATHAN..BANGALORE [Image]

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