Saturday, February 13, 2010

गौ-हत्या निषेध कानून की सोच पर साधुवाद और समर्थन की अप्पील

गौ-हत्या निषेध कानून की सोच पर साधुवाद और समर्थन की अप्पील

कर्नाटका सरकार माननीय मुख्यमंत्री महोदय श्री बी.एस.येद्द्य्युरप्पाजी के कुशल नेतृत्व में गतिशील है और बधाई की पात्र है कि उन्होंने गौ हत्या निषेध कानून पारित करने क़ी ठान ली है हालाँकि कुछ अवरोध सामने है..जिस समाज ने हमें मानव कहलाने का अधिकार ही नहीं दिया-वरन स्रष्टि का सर्वोतम वरदान बनने के अनुकुल बनाया.उसके प्रति हमारा कितना उत्तरदायित्व है,इसे कदापि नहीं भूलना चाहिए..हिन्दुस्तान के महान महर्षियों ने संपूर्ण चराचर के बीच परमात्मा का निवास स्वीकार किया है..किसी को दुख दीये बिना ही सब के सुख क़ी कामना करना इस अभेद अनुभूति क़ी पहली सीढ़ी है..हिन्दू धर्म और जैन धर्म का मूल मंत्र सदैव से ही यही रहा है.."अहिंसा परमोह धर्म""

साधारणतः हिंसा का अर्थ लोग समझते है क़ि "प्राण लेना और अहिंसा उसका विपरीत अर्थ प्राण ना लेना समझा जाता है..kisi को kisi प्रकार का दुःख ना देना तथा सबके सुख का प्रयत्न करना ही अहिंसा है ..मनुष्य का परम कर्त्तव्य होना चाहिय कि समस्त जीवों को इश्वर की अनुपम कृति समझ कर सभी तरह से उसकी रक्षा करना ही उसके मानवीय जीवन का लक्ष्य रहे तथा उनकी सुख वृध्धि में ही सुख पाने कीसाधना करे..मन-वचन और कर्म से कभी kisi का अहित चिंतन ना करना ही अहिंसक का सबसे बड़ा लक्षण है..सभी जगह निर्बलो की पीठ पर प्रबल सवार है और गाय से निर्बल प्राणी भला दूसरा कौनसा है ..मनुष्य के स्वाद की लालसा ने गाय जैसे निरीह प्राणी का क़त्ल करने पर विवश कर दिया..मानव की क्या बात करे कि वह पशु-भक्षी तो बना ही बना पर अब नर-भक्षी भी हो गया है..ज्ञान-विज्ञानं की उन्नति का अनुचित लाभ उठाकर मनुष्य प्राण लेने की कला में पारंगत हो गया है..भूल सा गया है कि दूसरों को भी जीने का उतना ही अधिकार है जितना कि स्वयं को..मानव की बर्बरता जितनी बढ़ेगी,हिंसा का मूल्य उतना ही बढ़ता जायेगा..इस आदर्श को अपनाकर ही हम समता, सहानुभूति और प्रेम का परिचय दे पाएंगे..जैन धर्म में तो कीड़ों-मकोंड़ो की हिंसा तक वर्जित है या यूँ कहूँ कि भाव हिंसा तक वर्जित है

इश्वर की इस महान विभूति "गौ माता"को विकृत करने का हमें कोई अधीकार नहीं है और वह भी उदर-पोषण मात्र के लिए..कतई नहीं..सभ्य समाज का कोई नागरिक यह घोर अत्याचार kisi कीमत पर बर्दाश्त नहीं कर पायेगा..कातरता से ताकते हुए पशुओ की हत्या या उन पर प्रहार मात्र भी न्रशुन्श्ता का परिचय है..इश्वर की कृतियों को प्यार करना ही इश्वर की सबसे बड़ी आराधना है ..यदि हम केवल जीव मात्र के प्रति दया.करुणा,स्नेह आदि का व्यवहार करे तो भगवन हम पर प्रस्सन होंगे..कल्पना करे कि आज जो "सेव बाघ" कि धूम पुरे देश में मची है,वह कल गौ माता के लिए नहीं चलानी पड़े..एक एक गाय की निर्मम हत्या आने वाले कल को काफी भरी पड़ेगी..तमाम सामाजिक और धार्मिक संगठनो का यह पुनीत कर्त्तव्य है कि इस मुहिम में बढ़-चढ़ कर हिस्सा ले और रहे तमाम अवरोधों का विध्वंस कर दे ..जब सरकार इतनी दरिया-दिली दिखा रहो तो जन-जन का सहयोग इस सत्कार्य को भली-भांति अंजाम तक पहुंचा देगा वरना हाथ ही मलते रह जायेंगे..

कर्णाटक सरकार से कर-बढ़ प्रार्थना है कि जन-हित में बन्दर घुड़कियों को तवज्जो कतई ना दे तथा देशहित को ध्यान में रखते हुए पशु-धन की रक्षार्थ कठोरता से निर्णय को असली जामा पहनाये..देश के निर्माण sutra में तीन शब्द महत्वपूर्ण है :निर्णयन,उन्मूलन और संवर्धन..मुक्यमंत्री जी को चाहिए कि सभी पक्षों को शांति-पूर्वक इस बारे में सहमति बनाने कि दशा में प्रेरित करे और खुले दिल से बहस हो..सरकारे आती-जाती रहती है पर इस जीवन में सत्तासीन रहते हुए -हिन्दू संस्कृति कि रक्षा हेतु यदि हलाहल का उफनता प्याला भी पीना पड़े, आग के दरिया में भी कूदना पड़ जाए तो भी कभी नहीं हिचकिचाए..आपके सानिध्य में यदि प्राण-दान के मूल्य पर भी कर्णाटक का mastak "गौ-हत्या निषेध" के कारण विश्व के समक्ष ऊँचा कर पाएंगे तो आपका जीवन धन्य-धन्य हो जाएगा..गौ-माताओं को आपके द्वारा प्रदत यह अभय-दान हिंदुस्तान में स्वर्णाक्षरों में मढ़ा जाएगा..और फिर गौ-हत्या निषेध कि बात हिंदुस्तान में नहीं ता और कहाँ शोभनीय होगी..महान उपन्यासकार मुंशी प्रेमचंदजी ने ठीक ही pharmaya है; कि अहंकार शुन्य होकर एवं वैयक्तिक लाभ को ध्यान में ना रखकर की गई समाज सेवा ही श्रेयस्कर है;;

गौ विश्व क़ी माता है.

कटती गाय करे पुकार,बंद करो यह अत्याचार..
देश पर शासन वह करेगा जो गौ हत्या बंद करेगा..
सब सज्जनों क़ी यही पुकार,गौ हत्या अब नहीं स्वीकार


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