Sunday, October 31, 2010

जैन धर्म में दिवाली का महत्व

जैन धर्म में दिवाली का महत्व
कार्तिक मास की अमावस्या को मनाया जानेवाला त्यौहार दीपमलिका जैन धर्मावलम्बियों का एक प्रमुख त्यौहार है. इस पर्व की मान्यता है कि जब भगवान महावीर पावानगरी के मनोहर उद्यान में जाकर विराजमान हो गए और जब चतुर्थकाल पूरा होने में 3 वर्ष 8 माह बाकी थे, तब कार्तिक अमावस्या के दिन सुबह स्वाति नक्षत्र के दौरान स्वामी महावीर अपने सांसारिक जीवन से मुक्त होकर मोक्षधाम को प्राप्त कर गए. उस समय इन्द्र सहित सभी देवों ने आकर भगवान महावीर के शरीर की पूजा की और पूरी पावानगरी को दीपकों से सजाकर प्रकाशयुक्त कर दिया. उस समय से आज तक यही परम्परा जैन धर्म में चली आ रही है और इसी कारण जैन धर्म के अनुयायी इस दिन प्रतिवर्ष दीपमलिका सजाकर भगवान महावीर का निर्वाणोत्सव मानते हैं. ऐसा विश्वास किया जाता है कि इसी दिन शाम श्री गौतम स्वामी को केवल ज्ञान की प्राप्ति हुई थी.
इस महापर्व के सुअवसर पर सभी जैन धर्मावलम्बी संध्या के समय दीपों की माला सजाकर नई बही खातों का मुहूर्त करते हुए विघ्नहर्ता भगवान गणेश और माता महालक्ष्मी का पूजन करते हैं. श्रद्धालुओं में मान्यता है कि 12 गणों के स्वामी गौतम गणधर ही गौड़ी पुत्र गणेश हैं और भक्तों के विघ्नों के नाशक हैं. भगवान् महावीर और श्री गौतम गणधर के स्मृति का पर्व दीपमलिका मानव समाज को अहिंसा और शांति का सन्देश प्रदान करती है.
असत्य पर सत्य की विजय का प्रतीक तथा अँधेरे पर उजालों की छटा बिखेरने वाली दीपावली कार्तिक मास की अमावस्या के दिन पूरे भारतवर्ष में बड़ी धूम-धाम से मनाई JAATI है. इसे रोशनी का पर्व भी कहा जाता है. दीपावली त्यौहार हिन्दुओं, सिख, बौध धर्म के लोगों द्वारा भी हर्षोल्लास पूर्वक मनाया जाता है. यूं तो इस महापर्व के पीछे सभी धर्मों की अलग-अलग मान्यताएं हैं, परन्तु हिन्दू धर्म ग्रन्थ में वर्णित कथाओं के अनुसार दीपावली का यह पावन त्यौहार मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम के 14 वर्ष के बाद बनवास के बाद अपने राज्य में वापस लौटने की स्मृति में मनाया जाता है. इस प्रकाशोत्सव को सत्य की जीत व आध्यात्मिक अज्ञानता को दूर करने का प्रतीक भी माना जाता है.

परम्पराओं का त्यौहार दीपावली में मां लक्ष्मी व गणेश के साथ मां सरस्वती की पूजा भी की जाती है. चूंकि गणेश पूजन के बिना कोई भी पूजा अधूरी मानी जाती है, इसलिए लक्ष्मी के साथ विघ्नहर्ता का पूजन भी किया जाता है और धन व सिद्धि के साथ ज्ञान भी पूजनीय है, इसलिए ज्ञान की देवी मां सरस्वती की भी पूजा होती है. इस दिन दीपकों की पूजा का विशेष महत्व होता है, इसलिए भक्तों को चाहिए कि वह दो थालों में 6 चौमुखे दीपक को रखें और फिर उन थालों को 26 छोटे-छोटे दीपक से सजाएं.
ऐसा विश्वास किया जाता है कि इस दिन यदि कोई श्रद्धापूर्वक मां लक्ष्मी की पूजा करता है तो, उसके घर में कभी भी दरिद्रता का वास नहीं होता और वह सदा ही अन्न, धन, धान्य व वैभव से संपन्न रहता है. दीपावली का पर्व समाज में उल्लास, भाई-चारे व प्रेम का सन्देश फैलता है.
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Sajjan Raj Mehta
PRESIDENT..JAIN YUVA SANGATHAN

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