Wednesday, November 30, 2011

इतिहास को दोहराने जा रहे है। इस तरह के कदम कदापि राष्ट्रहित में नहीं हो सकते। आज सरकार की खुले बाजार की नीति ने भारतीय बाजार पर जो प्रतिकूल प्रभाव डाला है उसका नजारा साफ – साफ दिखाई यहां दे रहा है। जहां विश्वसनीय नहीं होते हुए भी चीन में निर्मित सामानों ने भारतीय बाजारों को बूरी तरीके से प्रभावित किया है। आज इसकी चमक धमक के बीच भारतीय आम उपभोक्ता इसकी ओर खींचा चला जा रहा है। दिवाली के अवसर पर यहां हर घरों में लगने वाली चमचमाती लड़िया अधिकांशतः चीन निर्मित देखी जा सकती है। बाजारों में घरेलू अधिकांशतः उपकरण, खिलौने, मोबाइल आदि चीन निर्मित पाये जा रहे है। जो सस्ते एवं आकर्षक रूप लिये हर उपभेक्ता को अपनी ओर खींच रहे है। जिसका भारतीय उद्योग पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है।

बाजार एवं उपभोक्ता की अपनी एक अलग संस्कृति होती है। बाजार में जो सामान सस्ता एवं लुभावना होगा, आम उपभोक्ता उसकी ओर स्वतः ही खीचा चला आयेगा। सामान टिकाउ है या नहीं इसका वह मूल्यांकंन कम करता है। इसी कारण जो सामान सस्ता व दिखने में मनमोहक होता है उसकी बिक्री बाजार में ज्यादा होती है। इस रहस्य को चीन के लोग अच्छी तरह से भांप गये है। आज बाजार में भारत निर्मित सामानों की अपेक्षा चीन निर्मित सामान काफी कमजोर एवं कम टिकाउ है फिर भी बाजार में चीनी सामानों की आज बिक्री सबसे ज्यादा है। इसका कारण साफ है कि बाजार में कमजोर होते हुए भी चीनी सामान सस्ता होने के कारण बेहतर एवं टिकाउ भारतीय सामानों को पीछे छोड़ दिये है। खुले बाजार की संस्कृति के तहत पूंजीवादी व्यवस्था में पनपे मॉल ने भारतीय बाजार एवं उद्योग पर जो प्रतिकूल प्रभाव डाला है उसे नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। आज हमारी अर्थ व्यवस्था बिगड़गी जा रही है जिसे सरकारी तौर पर विकास के नाम आधुनिकता के आंचल से ढ़कने का भरपूर प्रयास जारी है, पर बढ़ती जा रही महंगाई इस खोखलेपन को उभार रही है। आज हमारा देश पूंजीवादी व्यवस्था की ओर तेजी से भाग रहा है, जिससे देश में बेरोजगारी, महंगाई, पनपती जा रही है ओर हमारी सरकार विकास के तराने गुनगुना रही है। इस तरह के हालात निश्चित तौर पर राष्ट्रीय विकास में बाधक बन रहे है। जिसे हम समझकर भी अनजान बनने की कोशिश कर रहे है।

पूंजीवादी व्यवस्था के तहत पनपी आर्थिक उदारीकरण नीति तले पनपे बाजार एवं आयातित माल ने भारतीय उद्योग पर पहले से ही इस तरह प्रतिकूल प्रभाव डाला है, जिससे यहां के सारे उद्योग ध्रधे, बाजार चौपट होने लगे है। जब रिटेल में विदेशी निवेश का समावेश होने लगेगा तो देश के छोटे मझोले देकानदार सीधे तौर पर लूट जायेंगे। फिर देश में बेराजगारी की दिशा में एक और नई कड़ी जुड़ जायेगी। इस तरह के हालात को देखते हुए रिटेल में शत प्रतिशत विदेशी निवेश की कैबिनेट मंजूरी भारतीय बाजार एवं बाजार पर टिके लोगों को किस मोड़ पर खडा करेगी , विचारणीय मुद्दा है।

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Sajjan Raj Mehta

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