Thursday, November 25, 2010

.लद गए नारों के दिन मन को छु गया.

पत्रिका की लेखनी तो सशक्त है ही, पर भाई गुलाबजी की बात ही निराली है..लद गए नारों के दिन मन को छु गया..राजनीति के रथ पर सवार इन राजनेताओं को बाकायदा मालुम हो जाना चाहिए क़ि अब जनता उनकी चिकनी-चुपड़ी बातो पे मुहर नहीं लगाने वाली बल्कि उन्हें नितीश कुमार या नरेन्द्र मोदी जैसे जुझांरु नेता चाहिए जो उनका दर्द समझे तथा जिनकी कथनी और करनी में आटे में नमक वाला फर्क मात्र हो..भाषा ,जातिवाद और युवापन का राग अपनी जगह और विकासोन्मुख राजनीति के बलबूते पर पहले राज्य फिर देश का विकास का लक्ष्य अवश्यम्भावी है..जब- जब इस तरह का जनादेश जनता सरकार बनाने हेतु प्रदत्त करेगी , वह राज्य या देश निरंतर प्रगति के पथ पर अग्रसर रहेगा तथा हिंदुस्त्तान का परचम लहराता रहेगा..जय हो ...

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सज्जन राज मेहता
सामाजिक कार्यकर्ता..बंगलोरे

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