Wednesday, April 13, 2011

भगवान महावीर एवं जैन दर्शन
भगवान महावीर जैन धर्म के प्रवर्तक नहीं हैं। वे प्रवर्तमान काल के चौबीसवें तीर्थंकर हैं। आपने आत्मजय की साधना को अपने ही पुरुषार्थ एवं चारित्र्य से सिद्ध करने की विचारणा को लोकोन्मुख बनाकर, भारतीय साधना परम्परा में कीर्तिमान स्थापित किया। अपने युग के संशयग्रस्त मानव-समाज को धर्म-आचरण की नवीन दिशा एवं ज्योति प्रदान की। आपने धर्म के क्षेत्र में मंगल क्रान्ति सम्पन्न की। आपने उद्‍घोष किया कि आँख मूँदकर किसी का अनुकरण या अनुसरण मत करो।

धर्म दिखावा नहीं है, रूढ़ि नहीं है, प्रदर्शन नहीं है, किसी के भी प्रति घृणा एवं द्वेषभाव नहीं है, मनुष्य एवं मनुष्य के बीच भेदभाव नहीं है, मनुष्य-मनुष्येत्तर प्राणी के बीच विषम-भाव नहीं है। आपने धर्मों के आपसी भेदों के विरुद्ध आवाज उठाई। धर्म को कर्म-कांडों, अन्धविश्वासों, पुरोहितों के शोषण तथा भाग्यवाद की अकर्मण्यता की जंजीरों के जाल से बाहर निकाला। आपने प्राणी मात्र की समता का उद्‍घोष किया। आपने निर्भ्रान्त स्वरों में घोषणा की कि धर्म उत्कृष्ट मंगल है, धर्म एक ऐसा पवित्र अनुष्ठान है जिससे आत्मा का शुद्धिकरण होता है। धर्म न कहीं गाँव में होता है और न कहीं जंगल में, बल्कि वह तो अन्तरात्मा में होता है। जीवात्मा ही ब्रह्म है।

आत्मा ही सर्वकर्मों का नाश कर सिद्ध लोक में सिद्ध पद प्राप्त करती है। भगवान महावीर की यह क्रान्तिकारी अवधारणा थी। इसके आधार पर उन्होंने प्रतिपादित किया कि कल्पित एवं सर्जित शक्तियों के पूजन से नहीं अपितु अन्तरात्मा के सम्यग्‌ ज्ञान, सम्यग्‌ दर्शन एवं सम्यग्‌ चारित्र्य से ही आत्म साक्षात्कार सम्भव है, उच्चतम विकास सम्भव है, मुक्ति सम्भव है। मुक्ति दया का दान नहीं है, यह प्रत्येक मनुष्य का जन्म सिद्ध अधिकार है। बंधन से मुक्त होना तुम्हारे ही हाथ में है। उन्होंने व्यक्ति के विवेक को जागृत किया, उसके पुरुषार्थ को ललकारा। उन्होंने स्पष्ट रूप में कहा - पुरुष! तू अपना मित्र स्वयं है। उनका संदेश प्राणी मात्र के कल्याण के लिए है। उनका निर्देश था कि समस्त जीवों पर मैत्री भाव रखो।

आपने अहिंसा को परम धर्म के रूप में मान्यता प्रदान कर, धर्म की सामाजिक भूमिका को रेखांकित किया। आर्थिक विषमताओं के समाधान का रास्ता परिग्रह-परिमाण-व्रत के विधान द्वारा निकाला। वैचारिक क्षेत्र में अहिंसावाद स्थापित करने के लिए अनेकांतवादी जीवन दृष्टि प्रदान की। व्यक्ति की समस्त जिज्ञासाओं का समाधान स्याद्वाद की अभिव्यक्ति के मार्ग को अपनाकर किया। आपने सामाजिक सद्भाव, अनुराग, विश्वबंधुत्व के लिए आत्मतुल्यता एवं समभाव की आचरण-भूमिका प्रदान की।

भगवान महावीर ने पहचाना कि धर्म साधना केवल संन्यासियों एवं मुनियों के लिए ही नहीं अपितु गृहस्थों के लिए भी आवश्यक है। आपने संन्यस्तों के लिए महाव्रतों के आचरण का विधान किया तथा गृहस्थों के लिए अणुव्रतों के पालन का विधान किया। धर्म केवल पुरुषों के लिए ही नहीं, स्त्रियों के लिए भी आवश्यक है। आपने सभी को अपने संघ में शरण दी। आपने सभी के लिए धर्माचरण के नियम बनाए।'

'जैन धर्म एवं दर्शन की वर्तमान युगीन प्रासंगिकता।'

अनेकांतवादी दृष्टि, परिग्रह-परिमाण-व्रत का अनुपालन तथा अहिंसामूलक जीवन मूल्यों के आचरण से विश्व की वर्तमान युगीन समस्याओं का समाधान किस प्रकार सम्भव है तथा आगामी विष्व -मानस जैन धर्म एवं दर्शन से धर्माचरण की प्रेरणा किस प्रकार प्राप्त कर सकता है।
आज के मनुष्य को वही धर्म-दर्शन प्रेरणा दे सकता है तथा मनोवैज्ञानिक, सामाजिक, राजनैतिक समस्याओं के समाधान में प्रेरक हो सकता है जो वैज्ञानिक अवधारणाओं का परिपूरक हो, लोकतंत्र के आधारभूत जीवन मूल्यों का पोषक हो, सर्वधर्म समभाव की स्थापना में सहायक हो, अन्योन्याश्रित विश्व व्यवस्था एवं सार्वभौमिकता की दृष्टि का प्रदाता हो तथा विश्व शान्ति एवं अन्तर्राष्ट्रीय सद्भावना का प्रेरक हो।
पिछले सप्ताह का ताजा-तरीन उदाहरण यदि देखे तो श्री अन्ना हजारेजी ने भ्रष्टाचार के खिलाफ महात्मा गाँधी जी के अहिंसा सिद्धांत से प्रभावित होकर एक अलख जगाने का सार्थक सुप्रयास किया ओर जनता-जनार्दन ने जाति,धर्म,उम्र,स्वार्थ इत्यादि परे रखते हुए अपार जन समर्थन प्रदान किया जिसकी परिणिति स्वरुप सरकार को छोटे गांधीजी के आगे घुटने टेकने पड़े..यह एक सर्व-विदित सत्य है की राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी जी ने अहिंसा का पाठ वर्धमान महावीर से सिखा था तथा उन्होंने भगवान महावीर को अहिंसा का अग्रदूत जीवन पर्यंत माना..

देश के विकास में जैनियों का योगदान

देश की कुल जनसंख्या का एक प्रतिशत जैन समाज है, लेकिन देश के विकास में उनका योगदान उल्लेखनीय है। आइए देखें :-

* देश में कुल इन्कम टैक्स का 24 प्रतिशत जैन समाज के लोग भरते हैं।

* देश में होने वाले दान-दक्षिणा का 62 प्रतिशत जैन समाज द्वारा किया जाता है।

* देश की कुल 16 हजार गौशालाओं में से 12 हजार गौशाला जैन समाज द्वारा संचालित होती हैं।

* देश भर मैं जैन समाज के तीर्थ और मंदिरों की संख्या लगभग 50 हजार हैं।

* देश के शेयर ब्रोकरों में 46 प्रतिशत जैन हैं।

* देश के अग्रणी समाचार पत्रों में से 80 प्रतिशत जैन समाज के लोगों द्वारा चलाए जाते हैं।

* देश के कुल विकास में 25 प्रतिशत योगदान जैन समाज का है।

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