Tuesday, June 25, 2013
अपनी सामाजिक संस्थाओ में क्या आपसी समन्वय संभव नहीं ?
अपनी
सामाजिक संस्थाओ में क्या आपसी समन्वय संभव नहीं ?
आज हमारे समाज में सामाजिक संगठनों की जैसे बाढ सी आगई है किसी ना किसी क्षेत्र में कोई ना कोई सामाजिक संगठन जरूर कार्य कर रहा है लेकिन सवाल यह उठता है कि आज हमारे समाज विशेष में अनेक पंजीकृत राष्ट्रीय, प्रादेशिक व क्षेत्रिय संगठन कार्यरत है क्या वे संगठन अपना दायित्व पूर्ण रूप से निभा रहे हैं और वे अपने संविधान व विधान के अनुरूप कार्य कर रहे हैं ? यदि ये संगठन ऐसा करने में असमर्थ है तो हमारा नैतिक दायित्व बनता है कि हम उस अनियमित्ता का आंकलन करे और उसके सुधार के लिए आवाज़ उठाएं । प्राय: ऐसा देखने में आता है कि कुछ संगठन अपना दायित्व निभाने के बजाय केवल टिप्पणियां ही करते रहते हैं । जबकि वास्तिविकता में वे खुद भी उसका पालन नहीं करते हैं । लेकिन वे दूसरो से अपेक्षा करते हैं कि वे उसका पालन करें । ऐसा समाज व संगठन के लिए खतरा है । क्या इस प्रकार भी कोई समाज का भला हो सकता है । जब किसी सामाजिक संगठन का मुख्य व्यक्ति केवल अपनी कुर्सी को बचाने के लिए साम-दाम दण्ड भेद की नीति अपनाने से भी नहीं हिचकिचाता है ओर वह चाहता है कि वह उस संस्था का आजीवन मुखियां बनकर अपनी वाहवाही लूटने की फिराख़ में रहता है । लेकिन उसे इस बात का अहसास नहीं होता है कि वह इस स्वार्थ की भावना के पीछे समाज का कितना नुकसान कर रहा है । ऐसे संगठनो को चाहिए कि वे अपनी नीति और नियती दौनों में सुधार करे और समाज हित के बारे में सोचे उसी में उनका व समाज का भला है । नहीं तो आने वाली पीढ़ि उन्हें निश्चित ही दोषी ठहराएगी । आज हमारे संगठनों को स्वच्छ और दृढ़ रखना भी हमारी जिम्मेदारी है ।
जीवन में कुछ मुकाम या पद्दाव ऐसे आते है कि समाज को नूतन उधेश्य,नयी दिशा , मिल जाती है .जहाँ से सोच उभरती है ,गुजरती है समाज को नए अनुभव,चिंतन , आशाओ के सुमन अपना द्वार खोले खड़े प्रतीत होते है ..हर बिंदु में सिन्धु,हर पल में युग,प्रतीत होता है .. कितना सुखद हो सकता है यदि विभिन्न संगठन आपसी समन्वय से, सहकार,स्नेह से , समर्पण से ,अपने सत्कार्यो की समीक्षा करे और उस संगठन के साथ कंधे से कंधे मिला कर समाज में सेवा सुश्रुषा का भाव लिए अपनी तरफ से उस संस्था को समुचित योगदान प्रेषित कर उस सत्कार्य को सफलता के शिखर पर ले जाए .. आज कई संस्थाए एक विशेष कार्य में निपुण है और बड़ी ही कार्य कुशलता से समाज के तबको को साथ ले कर चलते हुए अपने लक्ष्य को बखूबी हासिल कर रही है .. पंजीकृत संस्थाए होना तथा पारदर्शिता बरतने की सख्त आवश्यकता है और दानदाता तथा सामाजिक सहयोग प्रदत्त करने वाले भी यह सुनिश्चित कर ले तो सोने में सुहागा हो जायेगा .. विशेष योजना के क्रियान्वन के लिए विशेष संगठन को दायित्व सौंप कर और आपसी सहमती,विचार विमर्श और चिंतन से बागडोर भी हमारे अपने किसी सरलमना .सुह्रदयी .समर्पित .सेवा भावी .सजग .सजीले .सदगुणी .सक्षम .संकल्पित और सकारात्मक सोच के धनी को कमान थमा दी जाए .. संगठन किसी भी क्षेत्र में क्यों न हो, वह सदैव अच्छा होता है- संगठन ही प्रगति का प्रतीक है, जिस समाज में संगठन होता है वहां सदैव शांति एवं सुख की वर्षा होती है . संगठन बहुत बड़ी उपलब्धि है, जहाँ संगठन है वहां कोई भी विद्रोही शक्ति सफल नहीं हो सकती है, जहाँ संगठन है वहां बहुत बड़ा बोझ उठाना भारी नहीं लगता । जहाँ संगठन है, एकता है वहां हमेशा प्रेम-वात्सल्य बरसता है- एकता ही प्रेम को जन्म देती है, एकता ही विकास को गति देती है । जो समाज संगठित होगा, एकता के सूत्र में बंधा होगा, वह कभी भी परास्त नहीं हो सकता- क्योंकि संगठन ही सर्वश्रेष्ठ शक्ति है, किन्तु जहाँ विघटन है, एकता नहीं है उस समाज पर चाहे कोई भी आक्रमण कर विध्वंस कर देगा ।
बड़ी ही प्रसन्नता होती है कि संगठित प्रयासों के बलबूते पर , समुचित जानकारी का संग्रहण और समावेश कर ,संबधित पक्ष और विपक्ष को विशवास में लेकर , किसी भी अहम् मसले पर सिधान्तो की लड़ाई लड़ी जा सकती है , बशर्ते मन में जज्बा त उज्जवल हो, लक्ष्य साफ़ द्रष्टिगोचर हो,तथ्यों से पूरी तरह वाकिफ हो,सकारात्मक सहयोग,समन्वय,सटीक टिप्पणियों से औत प्रोत वक्तव्य हो ,चिंतन की प्रवृति हो,सरकारी अधिकारिओं को वस्तु विषय की गहन जानकारी उपलब्ध कराने में पारंगतता हासिल हो ,मीडिया में समय -२ पर सटीक और सार्थक सामग्री का प्रकाशन कराया गया हो .बिना किसी लाग -लपेट के और राजनितिक मंशा से परे हटकर राजनीतिज्ञों को भी तथा प्रशासनिक पदेन हस्तिओ के साथ सुमधुर संबध हो और सही परिवेश और परिपेक्ष्य में उनतक बात पहुंचा पाए तो .धीरे-धीरे से ही सही पर अंत में सफलता नसीब हो सकती है . हम कतई आपा ना खोये , अधीर होकर किसी को कटु वचन न कहे , आपस में ना उलझे ,हम पदाधिकारियो के बीच के अंतर द्वंध को बाहर कदापि उजागर न होने दे , हमारेबिच स्वस्थ प्रतिद्वान्धिता सदेव रहे , मतभेद कभी मन-भेद में पल्लवित और पुष्पित ना हो ..इसका सदेव आभास रहे ..एक अकेला कुछ नहीं कर सकता .. संगठन में ही शक्ति है .. धैर्य,साहस,गहन चिंतन,मनन,लेखन,अनुसन्धान जारी रहे और संबधित जितने भी सहयोगी दल हो उनको विशवास में लेकर किया गया कार्य फलित होता है ..कोई भी पत्थर हथोड़े की एक चोट से नहीं टूटता तो इसका अर्थ कदापि यह नहीं कि वे प्रयास व्यर्थ हुए बल्कि उनसे पत्थर कमजोर होता गया , आखिर सत्कार्य साकार होना ही था .. नई पीढ़ी क़ी सोच भी व्यापक बदलाव को आतुर है और आशा ही नहीं पूर्ण ऐतबार है कि उनके संकल्पों क़ी बदौलत कुछ महत्वपूर्ण योजनाओं में ज्यादा दिलचस्पी बढ़ेगी ..युवाओं के लिए हर अवसर एक कांच की फूलदानी कि तरह है जो ना मालुम कब हाथ से फिसल जाए--या फिर कागज़ के एक पुडिया की तरह है कि कब पानी कि बूंद से यह गल जाए पर वे ज्यादा सतर्कता तथा बुजुर्गो के अनुभवी मार्गदर्शन में अपनी रोटी बराबर सेंक लेंगे..जरुरत है कि हम युवा सही दिशा में निरंतर आगे बढ़ते हुए समाज की दशा को बदलने में अपनी क्षमताओं की आहुति प्रदान कर संतोष सुख को प्राप्त करे..
सामजिक व्यवस्थाओ से जुड़े होने के कारण अन्य समाज एवं संघ के सदस्यों को हमसे अपेक्षाए होना स्वाभाविक है,जिस पर हमारा द्रष्टिकोण सुधारात्मक ह़ो, लचीलापन लिए हो तथा आमूल चुल बदलाव के लिए हो तो फिर कहना ही क्या . यदि हम सब मिलकर,अपनी-अपनी क्षमताओ का तड़का लगाकर ,इसी तरह जन हितार्थ चेष्टा कर सुप्रयांसो से समाज को नयी रोशनी दिखा सके तो हमारे अपनों के संबंधों में और प्रगाढ़ता आती रहेगी तथा तत्परता और लगन से समाज सफलता के शिखर की और अग्रसर होता रहेगा ..विश्व को आध्यात्मिक ज्ञान देने वाले जगत गुरु भारत की सभ्यता,सलीका,संस्कृति,सम्मान प्रवृति का सारे विश्व में प्रचार - प्रसार का उत्तरदायित्व भी हमारा है ..समाज के उत्थान का आधार आध्यात्मिक शिक्षा है।भारत की सभ्यता और संस्कृति को जीवंत रखने के लिए संयुक्त परिवार या संयुक्त समाज की परिकल्पना को मूर्त रूप देना होगा तथा हम अपने संचित संस्कारो से सामूहिक कार्य प्रणाली को तवज्जो दे पाए तो हम ज्यादा गौरवान्वित और फलित बनेंगे .. ..विश्व का मंगल हो,प्राणी मात्रा का मंगल हो,सभी के उज्जवल भविष्य क़ी मंगल कामना शुभ भावों के दीये में जलाकर प्रेषित करते हुए हर जन के सहयोग,सानिध्य,स्नेह,सहकार क़ी भावना भाता हूँ..
प्रस्तुत है , युवा जैन कवी श्री पुनीत जैन ( जोधपुर ) की यह कविता
खुशकिस्मत हूँ कि मुझे जिन धर्म मिला है,
खुशकिस्मत हूँ कि तिर्थंकरों का पावन धाम मिला है !
इसकी अलग ही है आन-बान, जिन-धर्म है सबसे महान,
इसकी महानता मैं नहीं कहता, कहता सारा जहाँ !
संत-सती, श्रावक-श्राविका डोर है इसकी थामे रखते,
भटके हुए प्राणियों को सन्मार्ग की राह है दिखलाते !
आशीर्वाद हैं इसमें 24 तिर्थंकरो का,
शास्त्रों में सार हैं आगम-वेद-पुराणों का !
जिन-धर्म के सिद्धांतों को मान दो,
महावीर की वाणी को सम्मान दो !
गर्भ में आने पर माँ त्रिशला को 14 स्वप्न आये थे,
जन्म होने पर स्वर्ग में इन्द्रों की सिहांसन कम्पाये थे !
महावीर बड़े ही निराले वीर थे,
अपनी वाणी के धीर-गंभीर थे !
जिन-धर्म मिल नहीं सकता बाजारों में,
यह तो मिलता हैं उच्च विचारों से !
शरणागत के कर्मो को तोड़ देता हैं,
मोक्ष की राह से यह जोड़ देता हैं !
जिन संतो की महिमा बड़ी निराली है,
सत्य-अहिंसा की पुष्प सींचे, ऐसे वो माली हैं !
रे मानव ! जाने-अनजाने करता तू बहुत कर्म है,
खुशकिस्मत हैं हम, जो मिला यह जिन धर्म है !
मानव जन्म को यूँ न बर्बाद करो,
धर्म-आराधना कर आत्मा का कल्याण करो !
विशेष आदर सहित........
प्रत्यक्ष ओर अप्रत्यक्ष रूप से सहयोग करने वालों को धन्यवाद..
जैन सज्जन राज मेहता
सामाजिक कार्यकर्ता..
098455O1150
Wednesday, June 19, 2013
कुर्बान देश पर
publIshed in rajasthan patrika pathak peeth in ALL INDIA ISSUE ON 19.6.13
कुर्बान देश पर
होती है पहल जब कभी, देश के विकास पर चिंतन की;
होती है मन में उथल-पुथल, कुर्बान देश पर होने की|
टीस सी हृदय में उठती है, जीना दूभर सा हो जाता है;
सुख-सुविधाओं में पल-भर भी रहना मुश्किल हो जाता है|
जब समाज में बदलाव की बयार लाने को, कोई व्याकुल हो जाता है;
उसका तन-मन-धन-जीवन सब, न्योच्छावर , अर्पित हो जाता है|
जनहित को समर्पित जब आप सा कोई, इतिहास बदलने आता है;
उसके पीछे चल कर हर कोई , हर आहट की खबर पा जाता है |
राजस्थान पत्रिका अलख जगाये , जनता फिर भी ना जगे
नामुमकिन है होना ऐसा ,बस शुरुआत की लौ आप से लगे
सज्जन राज मेहता
सामजिक कार्यकर्ता
बैंगलोर .
09845501150
Sunday, June 16, 2013
आगे बढ़ो - देश गढ़ो
आगे बढ़ो - देश गढ़ो
हमारे देश का नाम भारत है .इसे प्रकृति का क्रीडा स्थल कहा जाता है ..यहाँ पर्वत मालाये,झर -झर कर बहते झरने ,हरे भरे उपवन , मानसून ,गंगा,जमुना,सरस्वती जैसी नदिया ,सभी प्रकार के फल-फूल,अनाज,सब्जिया,मेवा,सो ना चांदी जैसे अनेक धातु,हीरे लोहे जैसी वस्तुओं की खाने प्रचुर मात्र में उपलब्ध है यह तपोभूमि ऋषि मुनियों ,त्यागीयों,और तपस्वियों की जन्मभूमि कही जाती है ..ज्ञान के भण्डार वेदों का प्रादुर्भाव भी यही हुआ .दर्शन शास्त्र,आयुर्वेद,धनुर्वेद ,ज्योतिष शास्त्र इत्यादि विविध विज्ञानों की प्रथम ज्योति यहीं चमकी ..राजा हरीश चन्द्र की सत्य परायणता , राम की पित्र भक्ति,सीता का पतिव्रत्य,श्री कृष्णा की राजनीतिज्ञता,सम्राट अशोक का प्रजा वात्सल्य , चन्द्र गुप्त और विक्रमादित्या की वीरता ,बुद्ध , भगवान् महावीर और महात्माँ गाँधी जैसे सत्य और अहिंसा के पुजारी ,सरदार पटेल जैसे लोह पुरुष और अनगिनत शंकराचार्य ,साधू संत तथा ऋषि दयानंद ,स्वामी दयानंद आदि विद्वान इसी देश की माटी ने पैदा किये ..भिन्न - २ धर्म,जाति,राज्य,भाषा के होते हुए भी हमारी सकारात्मक सोच ,आध्यात्मिक सोच ,धर्म भावना,अपनत्व भावना ,राष्ट्रीय भावना हमें एक सूत्र में गुंथे हुए है ..इन सब बातों से " भारत एक राष्ट्र है " स्पष्तः सिद्ध हो रहा है ..
कुछ कारण विशेष से हमारे देश में खाध समस्या ,बेकारी की समस्या ,कुप्रबंधन की समस्या ,भ्रष्टाचार की समस्या हमारे अखंड भारत के विश्व की महाशक्ति बनने में बाधक हो रही है ..हमारा कर्तव्य है कि हम हमारी भारत माता के सपूत बनकर परस्पर सह्योग,सहकार और समर्पण से इन समस्याओ के निराकरण हेतु कृत संकल्प होकर आगे बढे ..हम स्वार्थ भावना से ऊपर उठ कर,अपने पूर्वजो,आदर्शो और शहीदों की शहादत को सम्मान देते हुए भारत का गौरव बढ़ाये .. हम एक-जुट होकर सरकार और सामाजिक संस्थानों के साथ मिलकर ऐसा आचरण करे कि पडोसी देशो के कलेजे पर फिर से सांप लौटने लगे ..हम किंकर्तव्यविमूढ ना होए तथा आशा की किरण पर पानी कतई ना फिरने दे ..हम आशाओं से परिप्लावित हो उठे और विरोधी शक्तिया जो भीतरी है या बाहरी उनको आंसुओ के घूँट पीने पर विवश कर दे ..मन चंगा तो कठौती में गंगा
भ्रष्टाचार की बीमारी ने कितने लोगों के जीवन-रस को चूसकर नारंगी के छिलके की तरह दर-किनार कर दिया है..उनके अरमानो की होली जल चुकी है..भ्रष्टाचार इतनी चरम बुलंदी पर पहुँच चुका है क़ि सुप्रीम कोर्ट को भी उसपर अनचाही फ़ब्तिया कसनी पड रही है..खेलो में भष्टाचार, जमीन घोटालो में,रक्षा-सौदों में,दिनों-दिन के व्यवहारों में यह इतना घुलमिल चुका है क़ि बिना इसके सांस लेना तक दूभर हो चुका है..हद तो तब हो गयी है क़ि अब राशन वितरण प्रणाली में घोर अनियमित्ताओ के चलते हजारों करोडो क़ी हेराफेरी हो चुकी है तथा सरकार हाथ पर हरः धरे बैठी है क्योंकि हमाम में तो सब नंगे जो है..रेवडिया सब के बीच बराबर बटती जाती है तथा खून के आंसू रोने के लिए बचता है बेचारा गरीब. गरीब भरी जवानी में बुढ़ापे की आगोश में समा जाता है क्योंकि आजादी के ६३ वर्षों के पश्चात् भी वह दाने-दाने के लिए मोहताज है..राशन वितरण प्रणाली में लिप्त इन नकाबपोश अपराधियों को सरकार जितनी सख्त सजा दे कम है वरना उनके होंसले युही बुलंदी पर चढ़ते रहेंगे.समय का तकाजा है कि किसी भी तरह के भ्रष्टाचार को आम जनता बढ़ावा नहीं दे ओर शुरुआत स्वयं से होनी चाहिए..
एक नेता, एक अफसर रिश्वत लेता है तो हम कहते हैं कि यह भ्रष्टाचार है. ठीक है. लेकिन जब हम किसी बस में बिना टिकिट लिए, कण्डक्टर को आधे पौने पैसे देकर यात्रा करते हैं तब? और इतना ही नहीं, जब हम बिना बिल के कोई खरीददारी करते हैं तब? इस नज़र से देखेंगे तो पाएंगे कि हममें से शायद ही कोई हो जो भ्रष्ट न हो. बिना बिल के सामान बेचने वाला दुकानदार जितना दोषी है उससे कम दोषी हम नहीं हैं जो टैक्स बचाने के लिए खुद आग्रह करते हैं कि बिल न हो तो भी चलेगा. लेकिन, जैसा मैंने कहा यह तो हमारी चुनौती का एक हिस्सा है: भ्रष्ट आर्थिक आचरण.भ्रष्टाचार का यह विषवृक्ष छतनार ना होता जाए , इसके लिए इसके कारणो की जड़ पर ही कुठाराघ्त कराना होगा.
देश में व्याप्त कालाबाजारी,रिश्वतखोरी तथा अनगिनत भ्रष्टाचार की नई-नई किस्मे निरंतर सामने आ रही है ओर हम एक से निपटने में सक्षम भी नहीं हो पाते उससे पहले दूसरो पद्धति इज्जाद हो ज़ाती है..प्रजातंत्र में हर मनुष्य का मोल बराबर है- चाहे वह पंडित हो या मुर्ख,विचारवान हो या विचारशुन्य ,पैसे पर बिकने वाला हो या पूरा इमानदार..इसी तरह किसी भी भ्रष्टाचार के लिए हर भ्रष्टाचार उतना ही दोषी हो जितना करने वाला या करने वाला..कानून की लाठी समस्त भ्रष्टाचारियो पर एक सी चोट प्रदान करे..
अंग्रेजो की गुलामी से निवृत होने के बाद भी भ्रष्टाचार की गुलामी से त्रस्त होने के कारण ही आज भी देश के १००००० गाँव विद्युत के अभाव में जी रहे है,उतने ही गाँव सड़क से महरूम है..करीब २ लाख गाँवों में पोस्ट-ऑफिस तक नहीं है,प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र नहीं है..लाखों गाँव को रेल सेवा नसीब नहीं हुई है..ग्रामीण स्तर पर ५५ प्रतिशत आबादी ही शिक्षित है उसमे महिला शिक्षा का स्तर ओर भी नीचे है ? पञ्च-वर्षीया योजनाओ में वादे ओर स्वप्नों के सब्जबाग तो काफी दिखाए जाते है पर हकीकत के धरातल पर जमीन खिकी-खिसकी नजर आती है..जरुरत है क़ि योजनाओ में प्राथमिकता भले ही रेल,बंदरगाहों.हवाई अड्डो ,सड़को ओर विद्युत क़ी दी जाए पर साथ ही सम्पूर्ण योजना में समग्र विकास के लक्ष्य को ध्यान में रख कर सिंचाई,ग्रामीण विकास,ग्रामीण शिक्षा,स्वास्थ्य ओर प्राथमिक शिक्षा पर भी जोर रहे..नदियों को जोड़ने क़ी योजनाये ठन्डे बसते में पड़ी है जिसे असली जामा पहनाये जाने क़ी जरुरत है..नदियों को जोड़ने के कार्य से देश में कृषि उत्पादन को वर्त्तमान स्टार से ७-८ गुना बढाया जा सकेगा जिसके फलस्वरूप देश का किसान आत्म निर्भर बनेगा तथा जनता जनार्दन के हाथ में भी पैसा होगा ओर एक सीमा तक भ्रष्टाचार से विमुख होने क़ी कोशिश करेगा.देश क़ी वर्त्तमान चुनाव प्रणाली भी काफी हद तक भ्रष्टाचार को बढ़ावा देने वाली है ओर उसमे निरंतर बदलाव क़ी आवश्यकता है क्योंकि राजनीति में प्रवेश के पहले ही जब करोडो के वारे-न्यारे हो जाते है तो फिर राजनेता भ्रष्टाचा- उन्मूलन क़ी बात सोचे भी तो कैसे..सोचना है, कराना है तो जनता जनार्दन को करना है अतः कमर क़स कर समस्त स्वयं सेवी संस्था हो या स्वयं,हम यह सुनिश्चित करे क़ि कतई भ्रष्टाचार को बढ़ावा नहीं देंगे..जिस समाज ने हमें स्रष्टि का सर्वोतम वरदान बनने के अनुकूल बनाया , उसके प्रति हमारे कितने उत्तर-दायित्व है ,इसे हमें कदापि नहीं भुलाना चाहिए...
Wednesday, June 12, 2013
स्वस्थ प्रशासन का सजग पहरी राजनीतिज्ञ क्यों भटक रहा है ?
स्वस्थ प्रशासन का सजग पहरी
राजनीतिज्ञ क्यों भटक रहा है
?
राजनीति कर्तव्यों, आदर्शों और अपने जनसेवी उद्देश्यों के प्रति सच्ची निष्ठा का प्रतीक है। निस्पृह समाज सेवा है, एक तटस्थ विचारक की विचारणा और सूझबूझ का खुला गुलदस्ता है। सामाजिक चेतना की धूरी है, आस्था, तपस्या और सृजना की त्रिवेणी है, एक मिशन है, निष्काम और निस्वार्थ भाव से किये गये कार्यों का दस्तावेज है, लगन, कर्मठता तथा ईमानदारी इन तीन कर्म सूत्रों पर आधारित जीवन दर्शन है, नीर-क्षीर विवेक का प्रतिफल है, मगर वर्तमान राजनीतिक क्षेत्र में स्वस्थ राजनीति की अनदेखी हो रही है। स्वस्थ राजनीति ही उसके दल की लोकप्रियता निस्पक्षता और पैनेपन का प्रतीक तथा जीवंतता है। उसका अपना निर्णय दृष्टिकोण होता है और यही निर्णय, दृष्टिकोण का अलंकार है। यदि यह निर्माणात्मक, जनहितकारी, जन जागरण और जन चेतना की मशाल साबित हुआ तो राजनीति में स्वयं ही चार चांद लग जाते हैं। स्वार्थी और पीत राजनीति से सफलता नहीं मिल सकती।
वर्तमान में विश्व भर में विश्व कल्याण, विश्व शांति के प्रयास होने लगे हैं, ऐसी स्थिति में राजनेताओ को अहम् भूमिका निभानी होगी, क्योंकि उसका दायरा सम्पूर्ण विश्व में सर्व सुलभ साध्य साधना मात्र है। इस वृहद दायरे का निर्वाह स्वस्थ प्रशासन की परिधी में आ चुका है। विश्व स्तरीय राजनीति किसी भी प्रकार की गहन निरीक्षण शक्ति, सूक्ष्म अवलोकन, तात्कालिक जागरूकता और राजनैतिक चेतना द्वारा ही संभव है। राजनेताओ का ध्येय कोरी आलोचना नहीं है, वह ''ब्लैकमेल" तो हो ही नहीं सकता, क्योंकि उसके संकीर्णता, प्रलोभन न होना, सत्य को कड़वाहट तक न ले जाने, व्यर्थ के मसाले लगाकर ''सूर्खी" न बनाने की क्षमता हो। एक स्वच्छ मार्ग निर्मित किया जाये, स्वस्थ जनमत जागरूक करने का प्रयास ही जन प्रशंसा का पात्र बना सकती है और स्वस्थ प्रशासन का उज्जवल पृष्ठ जन-मन को मोह सकेगा, इसलिए नेताओ का स्वरूप सर्वजन सुखाये हो, सत्यता और वास्तिविकता के प्रतिमानो को वर्तमान के तराजू पर तोल कर प्रकाशित किया जाये, अर्नगल को अर्गल न बनाया जाये और न ही अर्गल को अतिक्रमण कर उसे रौंदा जाये। जरूरत पडऩे पर विचार-विमर्श उपरांत जनोपयोगिता के संदर्भ में निर्णय लिया जाये, अन्यथा जनमानस की मानसिकता बिगड़ते देर नहीं लगती और कुठाराघात भी हो सकता है। राजनीती और राजनैतिक संगठन किसी भी क्षेत्र में क्यों न हो , वह सदेव अच्चा रहता है ..संगठन ही प्रगति का प्रतिक है .
.जिस राजनितिक दल में संगठन होता है उसे जनता जनार्दन जनमत प्रदत्त करती आई है और करती रहेगी . जहाँ विघटन है. एकता का अभाव है, आपसी सामंजस्य प्रखर और प्रभावी नहीं है , विश्वास खंडित है वे विपक्ष के लायक ही रहेंगे .जहाँ संगठन है , एकता है , परस्पर प्रेम वात्सल्य बरसता है ,एकता ही प्रेम को जन्म देती है , विकास को जायज गति प्रदान करती है .संगठन के बिना किसी भी राजनितिक दल की कल्पना भी नहीं की जा सकती है ...आअज २१ वि सदी में जनता स्वस्थ राजनीती और सुशासन की ही इच्छुक है तथा समूचे विश्व में परचम लहराने का स्वप्न संजोने वाले राजनितिक दल या राजनेता को ही कमान सौपने का लक्ष्य रखेगी .
.राजनेताओ को समर्पित
अपने रिश्ते पे हमें नाज है ,
कल जितना भरोसा था उतना ही आज है
रिश्ते वो नहीं जो हमें सिर्फ गम और ख़ुशी में साथ दे
रिश्ते वो है जो अपनेपन का अहसास दे..
जयहिन्द..वन्दे मातरम..
जयहिन्द..वन्दे मातरम...
जैन सज्जन राज मेहता
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