Wednesday, June 12, 2013

​स्वस्थ ​प्रशासन ​ का सजग पहरी ​राजनीतिज्ञ क्यों भटक रहा है ​ ​ ?​

​स्वस्थ ​प्रशासन ​ का सजग पहरी ​राजनीतिज्ञ क्यों भटक रहा है ​ ​ ?​ ​राजनीति कर्तव्यों, आदर्शों और अपने जनसेवी उद्देश्यों के प्रति सच्ची निष्ठा का प्रतीक है। निस्पृह समाज सेवा है, एक तटस्थ विचारक की विचारणा और सूझबूझ का खुला गुलदस्ता है। सामाजिक चेतना की धूरी है, आस्था, तपस्या और सृजना की त्रिवेणी है, एक मिशन है, निष्काम और निस्वार्थ भाव से किये गये कार्यों का दस्तावेज है, लगन, कर्मठता तथा ईमानदारी इन तीन कर्म सूत्रों पर आधारित जीवन दर्शन है, नीर-क्षीर विवेक का प्रतिफल है, मगर वर्तमान ​राजनीतिक ​ क्षेत्र में स्वस्थ ​राजनीति की अनदेखी हो रही है। स्वस्थ ​राजनीति ही​ उसके दल ​ की लोकप्रियता निस्पक्षता और पैनेपन का प्रतीक तथा जीवंतता है। उसका अपना निर्णय दृष्टिकोण होता है और यही निर्णय, दृष्टिकोण का अलंकार है। यदि यह निर्माणात्मक, जनहितकारी, जन जागरण और जन चेतना की मशाल साबित हुआ तो ​राजनीति में स्वयं ही चार चांद लग जाते हैं। स्वार्थी और पीत ​राजनीति से सफलता नहीं मिल सकती। ​ वर्तमान में विश्व भर में विश्व कल्याण, विश्व शांति के प्रयास होने लगे हैं, ऐसी स्थिति में ​राजनेताओ​ को अहम् भूमिका निभानी होगी, क्योंकि उसका दायरा सम्पूर्ण विश्व में सर्व सुलभ साध्य साधना ​मात्र ​ है। इस वृहद दायरे का निर्वाह ​स्वस्थ प्रशासन ​ की परिधी में आ चुका है। विश्व स्तरीय ​राजनीति ​ किसी भी प्रकार की गहन निरीक्षण शक्ति, सूक्ष्म अवलोकन, तात्कालिक जागरूकता और राजनैतिक चेतना द्वारा ही संभव है। ​राजनेताओ ​ का ध्येय कोरी आलोचना नहीं है, वह ''ब्लैकमेल" तो हो ही नहीं सकता, क्योंकि उसके संकीर्णता, प्रलोभन न होना, सत्य को कड़वाहट तक न ले जाने, व्यर्थ के मसाले लगाकर ''सूर्खी" न बनाने की क्षमता हो। एक स्वच्छ मार्ग निर्मित किया जाये, स्वस्थ जनमत जागरूक करने का प्रयास ही जन प्रशंसा का पात्र बना सकती है और ​स्वस्थ प्रशासन ​ का उज्जवल पृष्ठ जन-मन को मोह सकेगा, इसलिए ​नेताओ ​ का स्वरूप सर्वजन सुखाये हो, सत्यता और वास्तिविकता के प्रतिमानो को वर्तमान के तराजू पर तोल कर प्रकाशित किया जाये, अर्नगल को अर्गल न बनाया जाये और न ही अर्गल को अतिक्रमण कर उसे रौंदा जाये। जरूरत पडऩे पर विचार-विमर्श उपरांत जनोपयोगिता के संदर्भ में निर्णय लिया जाये, अन्यथा जनमानस की मानसिकता बिगड़ते देर नहीं लगती और कुठाराघात भी हो सकता है। ​राजनीती और राजनैतिक संगठन किसी भी क्षेत्र में क्यों न हो , वह सदेव अच्चा रहता है ..संगठन ही प्रगति का प्रतिक है . .जिस राजनितिक दल में संगठन होता है उसे जनता जनार्दन जनमत प्रदत्त करती आई है और करती रहेगी . जहाँ विघटन है. एकता का अभाव है, आपसी सामंजस्य प्रखर और प्रभावी नहीं है , विश्वास खंडित है वे विपक्ष के लायक ही रहेंगे .जहाँ संगठन है , एकता है , परस्पर प्रेम वात्सल्य बरसता है ,एकता ही प्रेम को जन्म देती है , विकास को जायज गति प्रदान करती है .संगठन के बिना किसी भी राजनितिक दल की कल्पना भी नहीं की जा सकती है ...आअज २१ वि सदी में जनता स्वस्थ राजनीती और सुशासन की ही इच्छुक है तथा समूचे विश्व में परचम लहराने का स्वप्न संजोने वाले राजनितिक दल या राजनेता को ही कमान सौपने का लक्ष्य रखेगी . ​​.​राजनेताओ को समर्पित ​ अपने रिश्ते पे हमें नाज है , कल जितना भरोसा था उतना ही आज है रिश्ते वो नहीं जो हमें सिर्फ गम और ख़ुशी में साथ दे रिश्ते वो है जो अपनेपन का अहसास दे..​ जयहिन्द..वन्दे मातरम.. जयहिन्द..वन्दे मातरम...​ जैन सज्जन राज मेहता

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