Sunday, June 16, 2013

​आगे बढ़ो​ ​ -​ ​ देश गढ़ो

​आगे बढ़ो​ ​ -​ ​ देश गढ़ो हमारे देश का नाम भारत है .इसे प्रकृति का क्रीडा स्थल कहा जाता है ..यहाँ पर्वत मालाये,झर -झर कर बहते झरने ,हरे भरे उपवन , मानसून ,गंगा,जमुना,सरस्वती जैसी नदिया ,सभी प्रकार के फल-फूल,अनाज,सब्जिया,मेवा,सो ​ना चांदी ​जैसे अनेक धातु,हीरे लोहे जैसी वस्तुओं की खाने प्रचुर मात्र में उपलब्ध है यह तपोभूमि ऋषि मुनियों ,त्यागीयों,और तपस्वियों की जन्मभूमि कही जाती है ..ज्ञान के भण्डार वेदों का प्रादुर्भाव भी यही हुआ .दर्शन शास्त्र,आयुर्वेद,धनुर्वेद ,ज्योतिष शास्त्र इत्यादि विविध विज्ञानों की प्र​थम ​ज्योति यहीं चमकी ..राजा हरीश चन्द्र की सत्य परायणता , राम की पित्र भक्ति,सीता का पतिव्रत्य,श्री कृष्णा की राजनीतिज्ञता,सम्राट अशोक का प्रजा वात्सल्य , चन्द्र गुप्त और विक्रमादित्या की वीरता ,बुद्ध , भगवान् महावीर और महात्माँ गाँधी जैसे सत्य और अहिंसा के पुजारी ,सरदार पटेल जैसे लोह पुरुष और अनगिनत शंकराचार्य ,साधू संत तथा ऋषि दयानंद ,स्वामी दयानंद आदि विद्वान इसी देश की माटी ने पैदा किये ..भिन्न - २ धर्म,जाति,राज्य,भाषा के होते हुए भी हमारी ​सकारात्मक​ सोच ​,​आध्यात्मिक सोच ,धर्म भावना​,अपनत्व भावना ,राष्ट्रीय भावना​ हमें एक सूत्र में गुंथे हुए है ..इन सब बातों से " भारत एक राष्ट्र है " स्पष्तः सिद्ध हो रहा है .. कुछ कारण विशेष से हमारे देश में खाध समस्या ,बेकारी की समस्या ,कुप्रबंधन की समस्या ,भ्रष्टाचार की समस्या हमारे अखंड भारत के विश्व की महाशक्ति बनने में बाधक हो रही है ..हमारा कर्तव्य है कि हम हमारी भारत माता के सपूत बनकर परस्पर सह्योग,सहकार और समर्पण से इन समस्याओ के निराकरण हेतु कृत संकल्प होकर आगे बढे ..हम स्वार्थ भावना से ऊपर उठ कर,अपने पूर्वजो,आदर्शो और शहीदों की शहादत को सम्मान देते हुए भारत का गौरव बढ़ाये .. ​हम एक-जुट होकर सरकार और सामाजिक संस्थानों के साथ मिलकर ऐसा आचरण करे कि पडोसी देशो के कलेजे पर फिर से सांप लौटने लगे ..हम किंकर्तव्यविमूढ ना होए तथा आशा की किरण पर पानी कतई ना फिरने दे ​..हम आशाओं से परिप्लावित हो उठे और विरोधी शक्तिया जो भीतरी है या बाहरी उनको आंसुओ के घूँट पीने पर विवश कर दे ..मन चंगा तो कठौती में गंगा भ्रष्टाचार​​ की बीमारी ने कितने लोगों के जीवन-रस को चूसकर नारंगी के छिलके की तरह दर-किनार कर दिया है..उनके अरमानो की होली जल चुकी है..भ्रष्टाचार इतनी चरम बुलंदी पर पहुँच चुका है क़ि सुप्रीम कोर्ट को भी उसपर अनचाही फ़ब्तिया कसनी पड रही है..खेलो में भष्टाचार, जमीन घोटालो में,रक्षा-सौदों में,दिनों-दिन के व्यवहारों में यह इतना घुलमिल चुका है क़ि बिना इसके सांस लेना तक दूभर हो चुका है..हद तो तब हो गयी है क़ि अब राशन वितरण प्रणाली में घोर अनियमित्ताओ के चलते हजारों करोडो क़ी हेराफेरी हो चुकी है तथा सरकार हाथ पर हरः धरे बैठी है क्योंकि हमाम में तो सब नंगे जो है..रेवडिया सब के बीच बराबर बटती जाती है तथा खून के आंसू रोने के लिए बचता है बेचारा गरीब. गरीब भरी जवानी में बुढ़ापे की आगोश में समा जाता है क्योंकि आजादी के ६३ वर्षों के पश्चात् भी वह दाने-दाने के लिए मोहताज है..राशन वितरण प्रणाली में लिप्त इन नकाबपोश अपराधियों को सरकार जितनी सख्त सजा दे कम है वरना उनके होंसले युही बुलंदी पर चढ़ते रहेंगे.समय का तकाजा है कि किसी भी तरह के भ्रष्टाचार को आम जनता बढ़ावा नहीं दे ओर शुरुआत स्वयं से होनी चाहिए.. एक नेता, एक अफसर रिश्वत लेता है तो हम कहते हैं कि यह भ्रष्टाचार है. ठीक है. लेकिन जब हम किसी बस में बिना टिकिट लिए, कण्डक्टर को आधे पौने पैसे देकर यात्रा करते हैं तब? और इतना ही नहीं, जब हम बिना बिल के कोई खरीददारी करते हैं तब? इस नज़र से देखेंगे तो पाएंगे कि हममें से शायद ही कोई हो जो भ्रष्ट न हो. बिना बिल के सामान बेचने वाला दुकानदार जितना दोषी है उससे कम दोषी हम नहीं हैं जो टैक्स बचाने के लिए खुद आग्रह करते हैं कि बिल न हो तो भी चलेगा. लेकिन, जैसा मैंने कहा यह तो हमारी चुनौती का एक हिस्सा है: भ्रष्ट आर्थिक आचरण.भ्रष्टाचार का यह विषवृक्ष छतनार ना होता जाए , इसके लिए इसके कारणो की जड़ पर ही कुठाराघ्त कराना होगा. देश में व्याप्त कालाबाजारी,रिश्वतखोरी तथा अनगिनत भ्रष्टाचार की नई-नई किस्मे निरंतर सामने आ रही है ओर हम एक से निपटने में सक्षम भी नहीं हो पाते उससे पहले दूसरो पद्धति इज्जाद हो ज़ाती है..प्रजातंत्र में हर मनुष्य का मोल बराबर है- चाहे वह पंडित हो या मुर्ख,विचारवान हो या विचारशुन्य ,पैसे पर बिकने वाला हो या पूरा इमानदार..इसी तरह किसी भी भ्रष्टाचार के लिए हर भ्रष्टाचार उतना ही दोषी हो जितना करने वाला या करने वाला..कानून की लाठी समस्त भ्रष्टाचारियो पर एक सी चोट प्रदान करे.. अंग्रेजो की गुलामी से निवृत होने के बाद भी भ्रष्टाचार की गुलामी से त्रस्त होने के कारण ही आज भी देश के १००००० गाँव विद्युत के अभाव में जी रहे है,उतने ही गाँव सड़क से महरूम है..करीब २ लाख गाँवों में पोस्ट-ऑफिस तक नहीं है,प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र नहीं है..लाखों गाँव को रेल सेवा नसीब नहीं हुई है..ग्रामीण स्तर पर ५५ प्रतिशत आबादी ही शिक्षित है उसमे महिला शिक्षा का स्तर ओर भी नीचे है ? पञ्च-वर्षीया योजनाओ में वादे ओर स्वप्नों के सब्जबाग तो काफी दिखाए जाते है पर हकीकत के धरातल पर जमीन खिकी-खिसकी नजर आती है..जरुरत है क़ि योजनाओ में प्राथमिकता भले ही रेल,बंदरगाहों.हवाई अड्डो ,सड़को ओर विद्युत क़ी दी जाए पर साथ ही सम्पूर्ण योजना में समग्र विकास के लक्ष्य को ध्यान में रख कर सिंचाई,ग्रामीण विकास,ग्रामीण शिक्षा,स्वास्थ्य ओर प्राथमिक शिक्षा पर भी जोर रहे..नदियों को जोड़ने क़ी योजनाये ठन्डे बसते में पड़ी है जिसे असली जामा पहनाये जाने क़ी जरुरत है..नदियों को जोड़ने के कार्य से देश में कृषि उत्पादन को वर्त्तमान स्टार से ७-८ गुना बढाया जा सकेगा जिसके फलस्वरूप देश का किसान आत्म निर्भर बनेगा तथा जनता जनार्दन के हाथ में भी पैसा होगा ओर एक सीमा तक भ्रष्टाचार से विमुख होने क़ी कोशिश करेगा.देश क़ी वर्त्तमान चुनाव प्रणाली भी काफी हद तक भ्रष्टाचार को बढ़ावा देने वाली है ओर उसमे निरंतर बदलाव क़ी आवश्यकता है क्योंकि राजनीति में प्रवेश के पहले ही जब करोडो के वारे-न्यारे हो जाते है तो फिर राजनेता भ्रष्टाचा- उन्मूलन क़ी बात सोचे भी तो कैसे..सोचना है, कराना है तो जनता जनार्दन को करना है अतः कमर क़स कर समस्त स्वयं सेवी संस्था हो या स्वयं,हम यह सुनिश्चित करे क़ि कतई भ्रष्टाचार को बढ़ावा नहीं देंगे..जिस समाज ने हमें स्रष्टि का सर्वोतम वरदान बनने के अनुकूल बनाया , उसके प्रति हमारे कितने उत्तर-दायित्व है ,इसे हमें कदापि नहीं भुलाना चाहिए...

No comments:

Post a Comment