Friday, April 16, 2010

वसुधेव कुटुंबकम

वसुधेव कुटुंबकम
बस भोगवाद....आज के मुख प्रश्ठ पर काफी सटीक ओर सार्थक टिपण्णी पढ़ी..सरकार कानून की आड़ में क्या विसंगतिया उत्पन्न कर रही है..जन-जन को जागने की जरुरत है..मूल में भारतीय होने की भावना मर रही है..धर्म ओर जाति,भाषा ओर लिपि,रंग ओर रूप के नाम पर उठाई गयी दीवारे मनुष्य ने उठा रखी है..पारस्परिक मैत्रीपूर्ण संबंधो को तिलांजलि देकर मनुष्य ने उसी समय से इन दीवारों को बनने में सक्रियता दिखाई जब उसे सभ्यता क़ी पहचान हुई,जिसे हमने आधुनिक सभ्यता का नाम दिया है..हम भूल रहे है कि यह समस्त शस्य श्यामला वसुधा एक ही है ओर इस पर रहने वाले लोग एक ही परिवार के अभिन्न अंग है..इस अवधारणा का पल्लवन ही युद्ध ओर वैमनस्य क़ी विभीषिका को दूर करने में सहायक हो सकते है,,जिस दिन पृथ्वी के लोग धर्म ओर सम्प्रदायों ,रंग ओर भाषा के विभेद भूलकर एक परिवार की तरह आचरण करने लगेंगे,संभवतः;उसी दिन सच्ची मानवता का उदय होगा तथा उसका श्रीगणेश अतिशीघ्र हो...श्रीमान गुलाबजी को साधुवाद..हमारी सुप्त चेतना को जाग्रत करते रहे...

Sajjan Raj Mehta
सामाजिक कार्यकर्ता.
बन्गलोर.

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